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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन ३५ परन्तु रीति-ग्रन्थों की वास्तविक परंपरा चिन्तामणि त्रिपाठी से चली जिसने काव्यविवेक, काव्यप्रकाश, कविकुल कल्पतरु आदि ग्रन्थ लिखे। इनके उपरान्त लक्षण ग्रन्थों की भरमार होने लगी। कवियों में यह एक नियम-सा बन गया कि पहले विभिन्न रस, अलंकार आदि का लक्षण लिखना और फिर उनके उदाहरण में एक छंद लिख देना। कभी-कभी तो संदेह होने लगता है कि किसी कवि विशेष को कवि कहें या प्राचार्य । हिन्दी के काव्य-क्षेत्र में यह भेद इस प्रकार से लुप्त-सा हो गया। पंडित शुक्ल ने अपने इतिहास में लिखा है कि इन कवियों में सूक्ष्म विवेचन की कमी थी, सम्यक् मीमांसा नहीं हो पाती थी, अतएव उन्हें प्राचार्यत्व की गौरवयक्त पदवी नहीं दी जा सकती।' तोष, जसवंतसिंह आदि कुछ उत्तम आचार्य अवश्य मिलते हैं, परन्तु एक बहुत बड़ी संख्या उन कवियों की है जिनकी रचनाओं को भरती का काव्य कहा जा सकता है। मत्स्य प्रदेश के कवियों का अनुसंधान करने पर हमें कुछ कवि ऐसे मिले जिनके ग्रन्थों से विदित होता है कि वे कवि प्राचार्य कहे जाने के सर्वथा उपयुक्त हैं। कुछ ने तो सिद्धान्त प्रतिपादन में बहुत चातुर्य दिखाया है और व्याख्या को अधिक स्पष्ट करने के हेतु गद्य का भी प्रयोग किया है। हिन्दी में मम्मट कृत, 'काव्यप्रकाश' की अोर कवियों का ध्यान अधिक गया । इसके कई कारण हैं १. कवि समाज में काव्य-प्रकाश का अधिक प्रचार था। २. इस ग्रन्थ में काव्य के सभी अंगों की व्याख्या है। ३. इसमें काव्योपयोगी सभी प्रकरण--रस, ध्वनि, अलंकार, रीति आदि विद्यमान हैं। .. ४. समय-समय पर विद्वानों द्वारा इस ग्रंथ पर अनेकों टीकाएँ की गई। ५. काव्य-प्रकाश में ध्वनि और रस का सुन्दर समन्वय किया गया। दूसरा अधिक प्रचलित ग्रन्थ विश्वनाथ का साहित्यदर्पण था। इस ग्रन्थ का भी बहुत प्रचार था । काव्य के इन ग्रन्थों का बहुत उपयोग हुग्रा । हिन्दी के कवियों ने अनेक छायानुवाद प्रस्तुत किय । इस प्रसंग में मत्स्य प्रदेश के राम कवि, सोमनाथ, रसानन्द, कलानिधि, मोतीराम और जुगल कवि के नाम सम्मान के साथ लिये जा सकते हैं। सोमनाथ का रसपीयूषनिधि', रसानन्द का 'ब्रजेंद्रविलास' और कलानिधि का 'अलंकार कलानिधि' तो सर्वांगपूर्ण ग्रंथ है। रीतिकाल के अन्य कवियों से मिलान करने पर इन कवियों में प्राचार्यत्व की दृष्टि से कोई १ शुक्ल-हिन्दी साहित्य का इतिहास : रीतिकाव्य का सामान्य परिचय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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