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________________ अध्याय २ - रीति - काव्य कमी नहीं पाई जाती। सोमनाथ के 'रसपीयूषनिधि' को देख कर तो आश्चर्य होता है कि इस ग्रन्थ का अधिक प्रचार क्योंकर नहीं हुआ जब कि यह ग्रन्थ काव्य-सम्बन्धी सम्पूर्ण विषयों से समलंकृत है। यदि सोमनाथ का समुचित अध्ययन किया जाय तो उसकी प्रतिभा किसी भी साहित्य-गारखो को आश्चर्य से में डाल सकती है। मत्स्य प्रदेश के रीतिकालीन कवियों के ग्रन्थों में कुछ सामान्य प्रवृत्तियाँ दिखाई देती हैं । जैसे १. कवि और प्राचार्य ---हिन्दी में कवि और प्राचार्य एक हो गए हैं। मत्स्य में भी बहुत कुछ सीमा तक यही प्रवृत्ति दिखाई देती है किन्तु रीतिग्रन्थों के अतिरिक्त भी उनके कुछ अन्य ग्रंथ हैं जिनसे उनकी कवित्व शक्ति का अच्छा आभास मिलता है। कुछ कवियों में तो हमें स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि (अ) रीति का प्रतिपादन करते समय वे प्राचार्य हैं, तथा (आ) अपनी अन्य रचनाओं में वे कवि हैं। २. हिन्दी में संस्कृत के विभिन्न वादों अथवा सम्प्रदायों का प्रचलन नहीं हुअा-केवल अलंकार, रीति आदि की ही प्रधानता रही। इसका कारण यह हो सकता है कि हिन्दी में काव्य के विभिन्न अंगों का निरूपण करने की प्रणाली बहत कुण्ठित रही। हम स्पष्ट रूप से देखते हैं कि हिन्दी वालों ने कुछ अलंकारों की संख्या तो अवश्य बढ़ाई और शृगार के अंतर्गत नायकनायिका भेद का निरूपण भी विस्तार के साथ किया किन्तु काव्य के अन्य अंगों पर कुछ भी मौलिक कार्य नहीं हुअा। इस सम्बन्ध में विषय प्रतिपादन की उत्कृष्टता मत्स्य की देन कही जा सकती है। ३. रीतिकालीन कवियों को कवित्त, सवैये आदि छंद अधिक प्रिय थे। मत्स्य प्रदेश में भी यही मनोवृत्ति रही। कहीं-कहीं दोहे और छप्पय की योर भी रुचि देखी गई है। वैसे तो इस काल के कवियों ने पदों में भी कविता की किन्तु उनमें काव्य-निरूपण नहीं हुआ, कविता मात्र ही हुई। ४. मत्स्य प्रदेश की खोज में कुछ ऐसी पुस्तकें भी मिलीं जिनमें राग-रागनियों का निरूपण हुया है। सामान्यतः हिन्दी में इस कोटि के निरूपण ग्रंथ नहीं मिलते हैं किन्तु व्रज में संगीत का अधिक प्रचार था । वहाँ कवियों का ध्यान राग-रागिनियों की ओर भी गया । ५. रीतिकाल के कवियों ने शृगार की ओर अधिक ध्यान दिया और इसी कारण शृगार सम्बन्धी विषयों का अधिक विवेचन हुआ। नायक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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