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________________ २० अध्याय १ - पृष्ठभूमि पुस्तकों के संग्रह हैं, जैसे- रावराजा यदुनाथसिंह, वृन्दावन वाले राजाजो, वैर वाले राजाजी । ' प्राप्त सामग्री अव्यवस्थित और जीर्णावस्था में मिली है। __ अलवर में सामग्री तो कम है किन्तु है अधिक व्यवस्थित। इसका सबसे बड़ा संग्रह अलवर म्यजियम में है। पहले पोथीशाला के नाम से एक सरकारी विभाग था किन्तु बाद में यह सम्पर्ण सामग्री म्यजियम को दे दी गई। महाराज अलवर का निजी पुस्तकालय अनेक सुन्दर हस्तलिखित पुस्तकों से परिपूर्ण है। मैंने कई दिन उनके 'विजय पैलेस' पर ही व्यतीत करके पुस्तकालय का अवलोकन किया और कुछ उपयोगी सामग्री मिली। अनुसंधान के क्षेत्र में पंडित रामभद्र ग्रोझा का नाम प्रमुख है । कवि जयदेवजी की शिष्य मण्डली भी जिसमें, पंडित नाथूराम, पंडित हरिनारायण किंकर तथा ब्रजनारायण आचार्य के नाम लिये जा सकते हैं, इस ओर अग्रसर हुई । कुछ साहित्य बारहठों के पास है और कुछ भट्ट लोगों के पास। यहां के अनेक कवि बारहठ हैं, जैसे-उम्मेदराम, रामनाथ, शिवबख्श, बख्तावरदान । जावली के ठाकुर साहब के पास कई पुस्तकें मिलीं। तिजारा में भी एक संग्रहालय था किन्तु उसको सामग्रो अब नष्ट-भ्रष्ट हो गई है। बसवा, राजगढ़ आदि स्थानों में भी सामग्री प्राप्त होती है किन्तु ऐसी अवस्था में जिससे लाभ उठाना बहुत कठिन है । इसी प्रसंग में मन्दिरों का नाम भी लिया जा सकता है, जिनमें प्रधानता वल्लभकुलो मन्दिरों की है जहां कृष्ण साहित्य मिलता है। कामां के प्रसिद्ध चन्द्रमाजी के मन्दिर में हस्तलिखित सामग्रो है, परन्तु इस प्रकार की सामग्री से कोई विशेष प्रयोजन हल नहीं होता, क्योंकि प्रथम तो उस सामग्री का दर्शन ही कप्ट-साध्य है और उसमें प्रायः पूजा संबंधी पद हैं। इनका साहित्यिक मूल्य भी थोड़ा ही प्रतीत होता है । सूर के पदों को संग्रह करने की अोर बहुत रुचि रही है। इस प्रसंग में एक बात जान कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ । सूर के पांच-छै हजार पद प्रचलित हैं किन्तु मुझे एक प्रतिष्ठित व्यक्ति ने बताया कि नगर के पास एक ग्राम में एक ठाकुर के यहां सूर के सवा लाख पदों की हस्तलिखित पुस्तक मौजूद है। हिन्दी जगत में यह समाचार बहुत महत्वपूर्ण है और संभव है इसका पता लगने पर सर संबंधी धारणाओं में अनेक परिर्वतन हों। उस ग्राम १ वैर के आदि शासक प्रतापसिंहजी कवियों के लिए कल्पवृक्ष सदृश थे। इस प्रदेश के प्रसिद्ध कवि सोमनाथ इन्हीं के आश्रित थे। आज भी वैर वालों के पास कुछ साहित्य बताया जाता है, किन्तु मुझे उपलब्ध नहीं हो सका ।। २ इस समय यह सामग्री रा० प्रा०वि० प्र० की देखरेख में दे दी गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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