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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन का पता टिकाना बहुत कुछ पूछने पर भी वे न बतला सके । पता नहीं उन्हें स्मरण ही नहीं पाया अथवा वे बताना ही नहीं चाहते थे। डीग के पास घाटा नामक स्थान में गुसांइयों का एक पुस्तकालय है जिसमें हस्तलिखित पुस्तकें भी मौजूद हैं, किन्तु साहित्यिक दृष्टि से इस संग्रह का मूल्य अधिक नहीं, क्योंकि वैद्यक-पुस्तके ही अधिक संख्या में हैं। कुछ सामान्य पदावली और कृष्णलीलासाहित्य अवश्य मिलता है। गोवर्द्धन में कुसुमसरोवर पर निवास करने वाले कृष्णदास बाबाजी ब्रज-साहित्य के अनुसंधान में लगे हुए हैं। गोवर्द्धन और भरतपुर का बहुत घनिष्ठ संबंध रहा है । एक प्रकार से गोवर्द्धन भरतपुर का हो भाग है क्योंकि अंग्रेजो राज्य में होते हुए भी यहाँ को श्राधे से अधिक भूमि भरतपुर को थी। भरतपुर के राजाओं का दाह-संस्कार गोवर्द्धन में ही होता है । मानसी गंगा के उत्तरी तट पर भरतपुर के राजाओं की छत्रियां बनी हुई हैं जो स्थापत्य कला का अच्छा नमूना हैं। कुसमसरोवर पर भी महाराजा सूरजमल तथा वर्तमान महाराज की पितामही को सुन्दर छत्रियां हैं। इनमें से पहली छत्री में अनेक चित्र हैं जिनका संबंध भरतपुर राज्य और वहां के मन्दिरों से है। भरतपुर में स्थित मन्दिर हरदेवजी के पुजारी गोसाईं बेनीप्रसाद जी ने बताया कि गोवर्द्धन की छत्री में भरतपुर के हरदेवजी के मन्दिर का ही चित्र है । अस्तु, यहां की सामग्री प्राय: माव्यवस्थित अवस्था में है और बहुत कुछ सुन्दर हस्तलिखित साहित्य समुद्रपार यूरोप और अमेरिका भेजा जा चुका है। फिर भी जो कुछ साहित्य मौजूद है वह मत्स्य की प्रतिष्ठा स्थापित करने में यथेष्ट है। संभव है, अनुसंधानकर्ताओं द्वारा कुछ और भी महत्वपूर्ण सामग्री प्राप्त हो सके। हमारे चारों राज्यों का वर्तमान स्वरूप सन् १७५० के लगभग निर्मित हुग्रा और हमने अपने अन्वेषण का समय तभी से चुना है। इन स्थानों में इससे पहले का साहित्य बहुत कम मात्रा में उपलब्ध होता है । इस समय से पहले की सामग्री प्राप्त करने की दृष्टि से जयपुर के कुछ पुस्तकालयों को देखा गया। वहां के सार्वजनिक पुस्तकालय में तो हस्तलिखित पुस्तकों की संख्या बहुत कम है । अपने काम की हमें एक ही उपयोगी पुस्तक 'दयाबोध' प्राप्त हुई जो मुद्रित प्रति के १ दो एक महाशय यही काम करते थे। एक महाशय भजनलाल बोंडीवाला अपनी जीविका अमेरिका और जर्मनी को हिन्दी की हस्तलिखित पुस्तकें भेज कर ही प्राप्त करते थे। अमेरिका के विश्वविद्यालयों में संग्रहीत हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची देखने पर इस बात की पूर्ण पुष्टि हो गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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