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________________ मत्स्य-प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन धार्मिक थो। लोग बेईमानी नहीं करते थे। समय पड़ने पर व्यापार करने वाले बनिये भी तलवार पकड़ लेते थे। कुछ बनिया-परिवारों की कहानी तो बहुत ही प्रोजपूर्ण है।' और पेशे भी यथाक्रम चलते थे। इस प्रान्त का बहुत कुछ साहित्य उपलब्ध है। यहां की साहित्यिक संस्थानों में काफी हस्तलिखित पुस्तकें मिलती हैं। यह सभी सामग्रो काफी पहले की एकत्रित की हुई है । आजकल तो खोज का काम कुछ अन्य प्रकार ही है, लुप्तप्राय, किन्तु सुन्दर साहित्यिक ग्रन्थों को एकत्रित करने की अोर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि इस अोर थोड़ा भी ध्यान दिया जाय तो बहुत-से लुप्त साहित्य का उद्धार किया जा सकता है और हिन्दी साहित्य के भण्डार को अभिवृद्धि हो सकती है। अपनी खोज के सिलसिले में मुझे अनेक स्थानों पर जाना पड़ा, बहुत-सी संस्थाओं तथा व्यक्तियों के संग्रहालयों को देखने का भी अवसर मिला। भरतपुर का बहुत कुछ साहित्य वहां के राजकीय पुस्तकालय (अब जिला पुस्तकालय) तथा श्री हिन्दी साहित्य समिति में प्रस्तुत है। राजकीय पुस्तकालय में संग्रहीत सम्पूर्ण सामग्री भरत पुर राज्य के तोशाखाना से प्राप्त हुई थी। एक प्रकार से यह संग्रह राजानों द्वारा ही किया गया है और कालान्तर में पुस्तकालय को प्रदान कर दिया गया। श्री हिन्दी साहित्य समिति का हस्तलिखित साहित्य अनेक व्यक्तियों के कठोर परिश्रम का फल है। इस ओर विशेष परिश्रम करने वाले व्यक्तियों में वैद्य देवीप्रकाश अवस्थी (अब स्वर्गीय) तथा पंडित नन्दकुमार शर्मा (अब गुरुमुखिदास) के नाम लिये जा सकते हैं । हस्तलिखित पुस्तकों को संग्रह करने का प्रथम प्रयास पंडिता मयाशंकर याज्ञिक द्वारा हुआ और उन्होंने अपने निजी पुस्तकालय में बहुत-सी हस्तलिखित प्रतियां एकत्रित की। भरतपुर को कुछ सामग्री अन्यत्र भी मिलती है, जिनमें महाराज भरतपुर का नाम प्रमुख है । सामग्रो अव्यवस्थित है परन्तु काम की कई चीजें मिलीं। राज्य-परिवार से सम्बन्धित और भी कई व्यक्ति हैं जिनके पास १ इन वीर परिवारों में हल्दिया वंश विशेष उल्लेखनीय है। अलवर राज्य से संबंधित खुशालीराम हल्दिया का वर्णन पढ़ने योग्य है। जयपुर राज्य में यह परिवार बहत प्रसिद्ध हुअा और अलवर में भी इस परिवार के लोग हैं। इस वंश में आजकल जयपुर के राव नरसिंहदास हल्दिया प्रमुख हैं। हल्दिया वंश की वीरता और राजनैतिक चातुरी इतिहासप्रसिद्ध है। देखें-मेरे द्वारा संपादित तथा रा. प्रा. वि. प्र. मंदिर से शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला 'प्रताप रासो' । २ प्रसन्नता का विषय है कि राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर इस संबंध में बहुत ही प्रशंसनीय कार्य कर रहा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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