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________________ अध्याय १ - पृष्ठभूमि अपने स्वतन्त्र अस्तित्व को ही इसके अर्पित किया। उनकी अन्तरात्मा इस प्रभाव के विरुद्ध जिहाद की आवाज बुलन्द करती रही. और उस सभ्यता को हिन्दू सभ्यता में विलीन करने का प्रयास करती रही। ३. अंग्रेजों का प्रभाव इतना स्पष्ट दिखाई नहीं देता। वैसे धीरे-धीरे सभी हिन्दू राजाओं ने उनकी आधीनता स्वीकार की, किन्तु मत्स्य राज्यों में यह प्रभाव बहुत हल्का दिखाई देता है । इस सम्बन्ध में भरतपुर की गाथा तो बहुत गौरवपूर्ण है। अनेक बार आक्रमण करने पर भी अंग्रेजों को भरतपुर का दुर्ग विजय करने में सफलता नहीं मिली और लॉर्ड लेक को हर बार मुंह की खानी पड़ी। अन्त में धोखे से भरतपुर का किला काबू में किया गया। आज तक भी यह किला लोहागढ़' नाम से प्रख्यात है। कविवर वियोगी हरि ने अपनी 'वीर सतसई' में जाटों की इस वीरता का बखान करते हुए लिखा है ---- 'वही भरतपुर दुर्ग है, अजय दीर्घ भयकारि । जहं जट्टन के छोकरे, दिए सुभट्ट पछारि ।।' फिर भी धीरे-धीरे इस नई विदेशी सभ्यता का प्रभाव पड़ता रहा । कई एक साहित्यकार तो अंग्रेजों की आज्ञा मान कर ऐसा साहित्य प्रस्तुत कर गये जो किसी भी राज्य के लिए लज्जा की बात हो सकती है। इसी प्रकार का अलवर राज्य का एक हस्तलिखित इतिहास महाराज अलवर की पुस्तक-शाला में मुझे मिला ।' राजनीति के कुछ अंगों में अंग्रेजों की छाप पाई जाती है । यह मानना पड़ेगा कि साहित्य में इस विदेशी शक्ति का प्रभाव लड़ाइयों के कुछ वर्णनों को छोड़ कर अधिक नहीं पड़ा। साहित्य पर अंग्रेजी प्रभाव न पड़ने के दो कारण तो स्पष्ट ही हैं(अ) साहित्यकार अंग्रेजी भाषा तथा साहित्य से परिचित नहीं थे। (आ) राज्यों में अंग्रेजों का आना-जाना बहुत कम रहा। मत्स्य के राज्य इस मामले में काफी सजग रहे, और उन्होंने अपनी मान-प्रतिष्ठा का ध्यान रखा। परन्तु वैसे तीनों सभ्यताओं का सम्मिश्रण हुआ और सभ्यता का एक नवीन ही रूप बन गया जो ब्रिटिश भारत में अधिक व्याप्त था और राजस्थान में इतना अधिक नहीं । राजस्थान की साहित्य और संस्कृति की परम्परा मुसलमानी प्रभाव १ शिवबख्शदान कृत-दो जिल्दों में। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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