SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन उत्सव, उपासना को प्रणाली आदि इसी प्रभाव के अन्तर्गत हैं। साहित्य में भी प्रधान रूप से हिन्दू धर्म का प्रभाव दिखाई देता है। मानना पड़ेगा कि यहां का सम्पूर्ण भक्ति-काव्य इसी विचारधारा के अन्तर्गत है । मुसलमानों का प्रभाव दरबारी प्रथा के रूप में दिखाई देता है। जिस प्रकार मुगल सम्राट अपने मुसाहिबों के साथ दरबार किया करते थे, उसी प्रकार, वही दरबार, वही वेश-भूषा तथा रसूमात का अनुकरण सभी राजघरानों में किया गया। साहित्यिक कृतियों में भी इस प्रभाव के दर्शन होते हैं, जैसेमुगल सम्राटों के अनुसार किए गए दरबारों के वर्णन --लाल, बाज बटेर आदि के युद्धों का वर्णन (देखें 'लाल ख्याल') । शिकारों के भी विस्तृत विवरण प्राप्त होते हैं। कला पर मुगल-प्रभाव बहुत कुछ दिखाई देता है। राजस्थान के बहुत-से राजाओं ने मुगलों की प्राधीनता स्वीकार को और मुगल दरबारों का वातावरण लगभग सभी रियासतों में पा गया। राजाओं के महल, दरवार हाल, राजाओं के चित्र आदि देख कर मुगलकालीन सभ्यता के प्रभाव को मानना पड़ता है। साहित्य में भी मुगलों और मुसलमानों के सम्पर्क से बहुत कुछ हुना और मत्स्य-प्रान्त का साहित्य भी उसके प्रभाव से अछूता नहीं बचा। न केवल मुसलमान कलाकारों ने साहित्य-सृजन में ही भाग लिया, जैसे-फितरत,' गुलाममोहम्मद, अली बख्श, वरन् साहित्य की अभिव्यक्ति पर भी इसका प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । निगुण-काव्य पर मुसलमानी प्रभाव बहुत कुछ पड़ा, और साथ ही शृङ्गार को कविता में विलास की अभिरुचि मुगल दरबारों से ही ग्रहण की गई। उस समय के कवियों की वेश-भूषा भी मुगल राज्य के दरबारियों जैसी होती थी। इसके अतिरिक्त फारसी और अरबी के अनेक शब्द काव्य में प्रयुक्त हुए। प्रसिद्ध नजफखां की लड़ाइयों के वृत्तान्तों में मुसलमानों की वार्ता खड़ी बोली, उर्दू ही प्रतीत होती है। अनेक रियासतों का राजकाज फारसी-उर्दू में होता था। अतएव कोई कारण नहीं कि साहित्य भी इससे प्रभावित न होता। किन्तु एक बात अवश्य है कि कवियों ने इस अहिन्दू प्रभाव को पूर्णतः स्वीकार नहीं किया और न १ गद्यकार-सिंहासन बत्तीसी के रचयिता। २ प्रेम-गाथाकार-'प्रेम रसाल' के लेखक । 3 कृष्णलीलाकार-मंडावर के जागीरदार । ४ सूदन-सुजानचरित्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy