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________________ १० श्रध्याय १ पृष्ठभूमि गढ़ ही रहे हैं । इन स्थानों में यही भाषा साहित्य तथा बोलचाल दोनों के काम आती थी। साहित्य के इतिहास में यह एक सुन्दर उदाहरण है कि बोलचाल तथा पुस्तकों में एक ही भाषा का उपयोग एक ही समय में किया जाय । साहित्यिक कार्य के लिए सर्वत्र ब्रजभाषा का ही प्रयोग हुया । विनय सिंहजी द्वारा लिखी गई भाषा भूषण की टीका बहुत सुन्दर ब्रजभाषा गद्य में है । भाषा की ऐसी सुन्दर छटा बहुत कम देखने में आती है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि इस प्रान्त के ग्रन्थों को देखने पर स्पष्ट रूप से यह निष्कर्ष निकलता है कि यहां की साहित्यिक भाषा निरन्तर ब्रजभाषा हो रही । राजनैतिक दृष्टि से मत्स्य राजस्थान का अंश है किन्तु इसके साहित्य पर राजस्थानी का कोई भी प्रभाव नहीं है । मत्स्य का अधिक भाग मथुरा और आगरा से अधिक मिलता-जुलता है, राजस्थान के अन्य भागों से नहीं । मत्स्य और राजस्थान के अन्य प्रान्तों में यह विभिन्नता स्पष्ट रूप में देखी जा सकती है। जहां तक राजस्थानी का सम्बन्ध है, मेरे द्वारा किये गये अनुसंधान में कोई भी ग्रन्थ राजस्थानी के उपलब्ध नहीं हो सके। इतना ही नहीं, जो भी ग्रन्थ प्राप्त हुए, उन पर राजस्थानी का कोई प्रभाव भी लक्षित नहीं होता । इसका कारण न केवल ब्रजभाषा प्रान्त से निकटता है, प्रत्युत कवियों का प्रधानतः ब्रज भाषा-भाषी होना है । कवियों में राजस्थान-निवासी कवि न के बराबर थे । प्रायः सभी कवि ब्रजमण्डल से आये, फिर इनके द्वारा राजस्थानी का प्रयोग कैसे संभव होता । एक बात और भी है. संभवतः उस समय ब्रजभाषा के अतिरिक्त अन्य किसी भाषा में की गई रचना पसन्द भी नहीं की जाती । काव्य में ब्रजभाषा के लिए एक विशिष्ट स्थान है और इसी का मान-संबर्धन सभी को ग्रभीष्ट था । कुछ वीरकाव्यों में राजस्थानी का आभास केवल मूर्द्धन्य वर्गों के संयुक्ताक्षरोंसहित प्रयोगों तक सीमित है । शब्दों में टंकार, झनझनाहट, उग्रता आदि से ही कुछ लोग राजस्थानी में खींचने का प्रयत्न करते हैं । उनके कारकों, क्रियाओं तथा सर्वनामों का रूप देखने पर इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि वे ग्रन्थ ब्रजभाषा के ही हैं । श्रतएव मत्स्य प्रान्त के इस काल में साहित्य की भाषा ब्रजभाषा ही रही, अन्य किसी भाषा का कोई भी प्रभाव दिखाई नहीं पड़ता मत्स्य प्रान्त के साहित्य और संस्कृति पर तीन प्रभाव स्पष्ट रूप में दिखाई देते हैं। १. हिन्दुत्व का प्रभाव, जिससे जनसाधारण का जीवन और राजघरानों की परम्परा अधिकांश रूप में प्रभावित है । यहां के मन्दिर, त्यौहार और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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