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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन बहुत वर्षों तक यहां का शिक्षा-प्रतिशत बहुत कम था। राज के कवियों में भी अधिकतर उत्तरप्रदेश- मथुरा, अागरा प्रान्त से प्राते थे । इस समय के सर्वाधिक प्रसिद्ध कवि सोमनाथ मथुरा के रहने वाले मथुरिया चौबे अथवा माथुर चतुर्वेदी थे। इटावा, आगरा, ग्रादि नगरों से बराबर कवि आते रहते थे जो रीतिकालीन ग्रन्थों की परम्परा को निभाने का प्रयत्न करते थे। अतएव हम यहां के साहित्य को रीतिकाल में ही ले सकते हैं। वैसे यहां, भक्ति की अविरल धारा बही, और राम तथा कृष्ण की भक्ति का पूर्ण प्रचार होने से दोनों शाखाओं का काव्य उपलब्ध होता है । खोज में हमें एक प्रेम-गाथाकार भी मिला और निर्गगण का प्रतिपादन करने वाले कुछ संत भी। किन्तु इनका निर्गुण सगुण से प्रभावित है, और सतगुरु, अनहद, माया आदि को बातें कहते हुए ये कृष्ण को भगवान् मान कर उनकी लीलाओं का भी वर्णन करते हैं। यहां की साहित्यिक परम्परा का परिचय पाने के लिए हिन्दी के रीतिकाल को देखना चाहिए। इसके अतिरिक्त मत्स्य के काव्य में वोर-रस का दर्शन भी अनेक पुस्तकों में होता है । इस प्रान्त में कई ‘रासो' या 'रासा' पाये गये और सूदन का 'सुजान चरित्र' तो वीर-रस का ख्यातिप्राप्त ग्रन्थ है। कृष्ण की लोलानों से अन्य स्थानों की भाँति इस प्रदेश में भी अनेक पुस्तकों के प्रणयन की प्रेरणा हुई। साथ ही कुछ 'मंगल' भी लिखे गये, जैसे-पार्वतो मंगल, जानको मंगल, और उसी आधार पर लिखा गया राधामंगल । रुक्मिणी मंगल तो पहले भी लिखे गये थे किन्तु 'राधामंगल' इस प्रान्त की विशेषता है । राजाओं एवं राजकुमारों के हेतु मामान्य ज्ञान के लिए समय-समय पर लिखे कुछ ग्रंथ भी मिलते हैं । ऐसे 'अकलनामे' भरतपुर और अलवर दोनों स्थानों में मिले । हितोपदेश, पाईने-अकबरी आदि के अनुवादों द्वारा राजाओं को राजनीति से भी परिचित कराया जाता था ! हितोपदेश का प्रचलन बहुत रहा, और यहां के राजकुमारों के लिए अनेक विष्णु शर्मा' हुए जिनके गद्य-पद्यमय उपदेश यथेष्ट प्रचलित हुए। भाषा के सम्बन्ध में कहा जा सकता है कि अलवर को छोड़ कर शेष प्रान्त की भाषा सामान्य रूप से ब्रज ही है। भरतपुर और करौली तो ब्रजभाषा के ' देव के पौत्र भोगीलाल अलवर राज्य के आश्रित थे। २ अागरा ताजगंज के निवासी देवीदास करौली राज्याश्रित थे। ३ गोसाई रामनारायण कृत। अन्य 'मंगलों के साथ राधामंगल की एक ह.लि. प्रति डीग के एक वयोवृद्ध पुजारीजी के पास पाई गई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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