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________________ अध्याय १--पृष्ठभूमि हुई। गद्य और पद्य दोनों प्रकार का साहित्य निर्मित हुा । हिन्दी काव्याकाश के सूर्य, सूर और भ्रमरगीत को माधुर्य-परिपूरित करने वाले नन्ददास इसी प्रान्त की उपज थे। नन्ददास के भ्रमरगीत का बहुत प्रचलन था और उसका प्रभाव मत्स्य के अनेक ग्रन्थों में पाया जाता है। प्रसिद्ध कवि केशवदास के पूर्वज भी भरतपुर राज्यांतर्गत कुहेर के निवासी थे। कुछ समय पूर्व यहां के साहित्य का उद्धार तथा व्रज भाषा की प्रगति को बढ़ाने के हेतु 'ब्रज-साहित्य-मण्डल' की स्थापना हुई है और उसका अब तक का कार्य काफी प्रशंसनीय है। आगरा और मथुरा मत्स्य प्रान्त के समीपवर्ती नगर हैं। प्रागरे में तो मुगलों का बहुत कुछ प्रभाव था और यहां के कुछ कवि, सम्भवत: राज्याश्रित भी थे।' इन कवियों का पास के राज्यों में दौरा होता रहता था, तथा उनके ग्रन्थों का लिपिबद्ध करने का काम भी चलता था। कुछ कवि राज्यों के राजकवि बन जाते थे और अपने प्राश्रयदाता के नाम पर रचना भी कर देते थे। कुछ राजाओं की तो शिक्षा के सम्बन्ध में भी सन्देह है, और इसी कारण उनके द्वारा रीति-ग्रन्थों पर की गई अत्यन्त विद्वत्तापूर्ण टीकात्रों को देख कर आश्चर्य होता है। अागरा प्रसिद्ध बादशाहो नगर है और कुछ समय तो यह और इसके आसपास का प्रदेश भरतपुर के अधीन रहा था। अतएव यहां की साहित्यिक चेतना का मत्स्य-प्रदेश पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है। मथुरा के साहित्य और संस्कृति तथा कृष्ण की लीलाओं का भी मत्स्य साहित्य पर बहुत प्रभाव पड़ा। हिन्दी साहित्य में सन् १६०० ई. तक का काल रोतिकाल तथा गद्यकाल दोनों से सम्बन्धित है। १६वीं शताब्दी के पिछले पचास वर्ष तो आधुनिक गद्य के कहे जा सकते हैं। परन्तु मत्स्य प्रान्त में पाये गये ग्रन्थों का अनुसंधान करने पर विदित होता है कि मत्स्य-प्रदेश में १६०० ई० तक का सम्पूर्ण काल रीतिकाल के अन्तर्गत ही मानना चाहिए। यहां तो वही भाषा, वही साहित्यिक प्रवृत्ति, वही दरबारी रंग-ढंग और उसी प्रकार के साहित्यिक ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, जैसे रोति काल के अन्तर्गत । जिस समय अंग्रेजों द्वारा खड़ी बोली गद्य के हेतु प्रयास किया जा रहा था और खड़ी बोली गद्य का एक स्वरूप बनने लग गया था, उस समय-मत्स्य प्रदेश में वही रीतिकालीन पद्धति चल रही थी। हो सकता है, इसका एक कारण यहां की शिक्षा की कमी रही हो, क्योंकि पिछले १ महाकवि राय, सुन्दर प्रादि । २ महाराजा विनयसिंहजी के नाम पर 'भाषाभूषण' की टीका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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