SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन का यह साहित्यिक काल रीतिकाल के अन्तर्गत माना जाना चाहिए। इसमें सन्देह नहीं कि अन्य प्रकार का काव्य भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इन विभिन्न प्रवृत्तियों का विश्लेषण और स्पष्टोकरण अगले कुछ अध्यायों में किया गया है। हिन्दी साहित्य में रीतिकाल के अन्तर्गत जो भी प्रमुख प्रवृत्तियां उपलब्ध होतो हैं, वे सभी मत्स्य-प्रदेश में भी पाई जाती हैं । व्रजभूमि के निकट होने के कारण यहां कृष्ण की भक्ति का बहुत प्रचार रहा । वैसे, राम और लक्ष्मण की भक्ति भी रही, और भरतपुर दरबार के तो इष्टदेव ही लक्ष्मणजो हैं । प्रायः मन्दिरों में राम, कृष्ण तथा शिवजी की पूजा होती है। हनुमानजी के भी मन्दिर काफी हैं, किन्तु अपेक्षाकृत छोटे, क्योंकि वे राम के सेवक हैं। अतएव स्वामी के जैसे वैशवपूर्ण मन्दिर त्यागी हनुमान कैसे पसन्द . करते ? इस प्रदेश के पास ही कृष्ण की क्रीड़ा-भूमि है, जो कभी करौली और कभी भरतपुर के आधिपत्य में रहो । आज भी मथुरा में असकुण्डा पर भरतपुर को कोठी विद्यमान है। गोवर्द्धन, मथुरा, दाऊजी, गोकुल अादि बराबर अपना प्रभाव डालते रहे हैं। गोवर्द्धन तो भरतपुर महाराजा के इष्ट हैं और सात कोस की परिक्रमा लगाने का उत्साह आज तक राजपरिवार में है । 'गिरवर विलास'' नामक पुस्तक से मालूम होता है कि किस प्रकार यहां भरतपुर के राजा ने अनेक स्थानों का निर्माण कराया और यहां का प्रसिद्ध दीप-दान प्रारम्भ हुआ।२ व्रज के इन स्थानों से पण्डे बराबर पाते-जाते रहे और उनकी कुछ साहित्यिक कृतियां भी अनुसंधान में मिलीं। इन स्थानों में राजानों का आना-जाना भी बराबर बना रहता था और यहां के साहित्य तथा संस्कृति मत्स्य को बराबर प्रभावित करते रहे । आज भी मत्स्य-प्रदेश का एक बड़ा भाग व्रज से बहुत कुछ मिलता-जुलता है, वही बोली, वही वेष-भूषा और वे ही रीति-रिवाज । मथुरा के चौबे राज्यों में बराबर आते-जाते रहते थे और इनमें से कुछ तो दरबारों में बराबर उपस्थित रहते थे। व्रज से निकट होने के कारण यहां का वातावरण भी बहुत कुछ व्रजभाषा के अनुकूल बन गया था। व्रज प्रांत में व्रज भाषा के अनेक गौरव-ग्रन्थों का प्रणयन हुआ। हिन्दी के प्रसिद्ध अष्टछाप के कवि इसी प्रान्त में थे और उनकी वीणाएँ यहीं निनादित १ भरतपुर के प्रसिद्ध कवि उदयराम कृत । २ इस विषय पर प्रकाशित लेखक का एक स्वतन्त्र लेख देखें-जीवन साहित्य, वर्ष १, अंक ३ । ३ जैसे-पद मंगलाचरण बसंतहोरी, तिलोचन लीला । । उदाहरण के लिए भरतपुर नरेश बलवन्तसिंह के दरबार में जीवाराम चौबे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy