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________________ अध्याय १-पृष्ठभूमि १. यह प्रदेश शूरसेन, व्रज, का एक प्रमुख अंग है, और यहां की साहित्यिक भाषा व्रज भाषा ही रही। इस प्रान्त के किसी भी भाग में जो पुस्तकें अनुसंधान में मिलीं, वे व्रज भाषा की थीं। एक दो पुस्तकों के गद्य में 'कांईं' और 'छै' आदि में कुछ राजस्थानी प्रभाव है, किन्तु सम्पूर्ण उपलब्ध साहित्य व्रज भाषा का ही है। २. अन्य राज्यों की भांति यहां भी कवियों को राज्याश्रय मिलता रहता था। इतना ही नहीं, कुछ राजा तो स्वयं कवि होते थे, काव्य-सम्बन्धी चर्चा करते रहना ही जिनका रुचिकर कार्य था। स्वतन्त्र तथा अनूदित रचनाएँ बराबर प्रस्तुत होती रहती थीं। भरतपुर के बलवन्तसिंह और कुछ अंश तक अलवर के विनयसिंह इस कार्य में बहुत आगे बढ़े हुए थे। ३. इस प्रदेश का साहित्य व्रजमण्डल से बहुत प्रभावित था। मत्स्य का कुछ भाग तो ब्रज के अन्तर्गत आ ही जाता है, जैसे-डीग, कामा। यहां का काफी भाग व्रज के सन्निकट है, जहाँ की साहित्य-प्रवृत्ति का अनुगमन यहां के कवियों द्वारा बराबर होता रहा। ४. मत्स्य के साहित्य में सभी प्रकार की पुस्तकें उपलब्ध हुई हैं, जिससे सिद्ध होता है कि यहां के साहित्यिकों को प्रतिभा सर्वतोमुखी थी और कुछ न कुछ कलात्मक कार्य बरोबर चलता रहता था। अन्य कलाओं की अपेक्षा साहित्य-कला में अच्छा कार्य हुआ। वास्तु-कला के भी कुछ सुन्दर नमूने आज तक मौजद हैं। डोग के भवन इसका उत्तम प्रमाण हैं।' इन्हीं राजारों द्वारा कुछ छत्रियां आदि भी बनवाई गईं जो उनके पूर्वजों के स्मारकों के रूप में हैं ।२ गोवर्द्धन की कुंजें भी कुछ ऐसा हो प्रयास हैं । ५. इस प्रदेश के सभी राज्य वैष्णव मत के अनुगयी रहे, अतएव साहित्य पर इसका काफी प्रभाव पड़ा। शिवजी, हनुमानजी, गणेशजी, देवीजी, गंगाजी आदि की उपासना समान रूप से होती रही और शिवस्तुति, हनुमाननाटक, गंगाभूतलबागमनकथा जैसे ग्रन्थों का निर्माण हुआ। यह एक सामान्य-सी बात है, क्योंकि वैष्णव और शैवों में अधिक भेदभाव नहीं रहा है। ६. सन् १७५० से १६०० ई० तक का समय रीतिकाल के अन्तर्गत पाता है, और यहां भी रीति-सम्बन्धी रचनाएँ अधिक मिलती हैं, अतएव मत्स्य प्रदेश १ मुगलकालीन वास्तु-कला से प्रभावित ‘गोपाल भवन' आदि कई भवन डीग में हैं। २ गोवर्द्धन में अनेक सुन्दर स्मारक बने हुए हैं। भरतपुर के महाराजाओं की अंत्येष्टि क्रिया यहीं होती रही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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