SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय ८-उपसंहार ८ राधामंगल-पार्वतीमंगल, जानको मंगल तथा रुक्मिणोमंगल तो हिन्दो में चलते थे किन्तु मत्स्य के एक कविराज ने राधामंगल उपस्थित करके राधा और कृष्ण का विवाह करा दिया है और यशोदा दूल्हा तथा दुल्हिन को लिवा कर घर में ले जाती है । इस पुस्तक में कल्पना का अद्भत प्रयोग है। प्रबंधकाव्य की दृष्टि से वर्णन की सफलता दर्शनीय है, साथ ही स्थानीय रीतिरसूमात का विस्तृत वर्णन भी। ६. महादेव को व्याहुलौ- हिन्दी के कवियों द्वारा कई पार्वतीमंगल बनाए गए किन्तु 'महादेव को व्याहुलौ' द्वारा कवि ने ब्रज में प्रचलित परम्परा का एक सुन्दर उदाहरण उपस्थित किया है। इस पुस्तक की पद्धति को जोगियों के व्याहुलौ जैसा कहा जा सकता है किन्तु कवि की काव्य-प्रतिभा उत्कृष्टकोटि को है। १० गिरवर बिलास- कवि उदय राम लिखित यह एक ऐसा सुन्दर ग्रन्थ है जिसमें रास के रहस्य को बताने के साथ-साथ प्रकृति का एक सजीव चित्र उपस्थित किया गया है। ऐसा मालूम होने लगता है जैसे कवि ने पर्वत, सरोवर, वृक्ष, रज आदि सभी में जीवन डाल दिया हो । इसमें वर्णित रास प्रसंग द्वारा अज की लीलाओं का एक समा सा बंध जाता है । ११ राम-करुण, हनुमान, अहिरावण नाटक- इन पुस्तकों को नाट्य साहित्य का अंग तो नहीं माना जा सकता किन्तु इनमें जो सक्रियता देखी जाती है उसके आधार पर हम इनके नाम को सार्थकता पर ध्यान दे सकते हैं । यदि इनको श्रव्य-काव्य के रूप में नाटक मान लें तो कोई अनुचित बात नहीं होगी। इन नाटकों पर संस्कृत साहित्य के नाटकों की छाया है और हिन्दी में एक सुन्दर प्रयोग है। १२. लाल-ज्याल- इस पुस्तक को लाल संग्राम भी कह सकते हैं जो एक 'ध्याल' के रूप में है । ष्याल का अर्थ होता है 'क्रीड़ा',। इसमें लाल नामक चिड़िया की लड़ाई का वर्णन है । इस पुस्तक की लिपि परम विचित्र है तथा हस्तलिखित पुस्तकों में भी इसको मूल्यवान् मानना चाहिए । हिन्ही में पशु-पक्षी साहित्य बहुत कम मिलता है परन्तु मत्स्य के कवियों ने इस ओर भी ध्यान दिया है । 'समाविनोद' भी एक ऐसी ही पुस्तक है जिसमें तरु, सरोवर, पुष्प आदि मानवीय भावनाओं से युक्त हैं। १३. इतिहास-प्रधान वीर-काव्य- मत्स्य प्रदेश की विशेषता है। सुजानचरित्र और प्रतापरासौ को ही लीजिए। इन वीर काव्यों में उच्च कोटि की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy