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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन २६५ किया जा सकता। कवि मनीराम की टीका को ही बलभद्र के सिखनष पर प्रथम टीका मानना चाहिए, अन्य प्रयास इससे बहुत पीछे के हैं। ३ बषविलास- हिन्दी संसार में यह माना जाता रहा था कि देव कवि सनाढ्य ब्राह्मण थे और हिंदी साहित्य के प्राय: सभी इतिहासों में इसी बात का समर्थन किया जाता है। किंतु महाराज बख्तावरसिंहजी के प्राश्रित कवि भोगीलाल की इस पुस्तक ने सिद्ध कर दिया है कि देव कवि कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे, सनाढ्य नहीं । इसी बात को डॉ. नगेन्द्र ने स्वीकार किया है । ४. ध्वनि-प्रकरण- हिंदी के रीति-ग्रंथों में नायक-नायिका भेद, सिखनख, शृगार आदि के प्रकरण तो मिलते हैं किंतु संस्कृत के वास्तविक रीतिकार मम्मट, विश्वनाथ आदि के अनुगमनकर्ता नहीं दिखाई देते । सोमनाथ का रसपीयूषनिधि, कलानिधि का अलंकार-कलानिधि ग्रादि ग्रन्थ इस बात के प्रबल प्रमाण हैं कि मत्स्य में ध्वनि-प्रकरण का काफी विश्लेषण हुआ और अनेक रीतिकारों के मतमतांतर पर सुस्पष्ट व्याख्या हुई थी। ५. शृगोर की दृष्टि से अयोध्या का शृंगारो वर्णन -राम-सीता तथा लक्ष्मण-उमिला के वर्तमान शृगार वर्णन हिन्दी में नवीन वस्तु नहीं है । भरतपुर के कवियों ने इनके शृंगार का अच्छा वर्णन किया है। इन स्वरूपों की स्थापना झूला, होली, चित्रसारी आदि सभी शृंगारी स्थानों में की है किंतु पूज्य भाव के साथ। कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले शंकर और पार्वती की होली भी शामिल कर दी गई। ६. प्रेमरतनागर- इस ग्रन्थ में प्रेम की व्याख्या का इतना सुन्दर और वैज्ञानिक स्पष्टीकरण देख कर आश्चर्यचकित होना पड़ता है। साधारणतया इस प्रकार के ग्रन्थ हिन्दी साहित्य में नहीं मिलते। इसी प्रकार का एक ग्रन्थ 'नेह निदान' ग्वालियर के 'नवीन' ने निर्मित किया था । मानना पड़ेगा कि प्रेम के स्वरूप का इतना सुन्दर और उदाहरणसहित विश्लेषण 'प्रेमरतनागर' जैसे ग्रंथों में ही मिल सकता है । ७. विचित्र रामायण-खंडेलवाल वैश्य कुलोत्पन्न बलदेव कृत यह रामायण वास्तव में विचित्र है । बालकाण्ड तथा उत्तरकांड के दार्शनिक तथा आध्यात्मिक प्रसंगों को निकाल कर रामायण के कथानक को सुन्दर रोति से १४ अंकों में विभाजित किया है । इस ग्रंथ में काव्यगुण और कथा वर्णन दोनों की छटा मिलती है और स्थान-स्थान पर कवि के शव का स्मरण हो पाता है । प्रकृति वर्णन इसकी विशेषता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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