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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
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वीरता के दर्शन होते हैं और साथ ही इनमें वर्णन की हुई घटनाएं व्यक्ति, तिथि और संस्थाएं सभी इतिहास द्वारा प्रमाणित हैं । इस प्रकार का वीर-काव्य एक अनूठी वस्तु है और इसके द्वारा इतिहास के पृष्ठों का स्पष्टीकरण करने में पूरी सहायता मिलती है ।
१४. महाभारत, रामायण श्रादि के अनुवाद - इतनी बड़ी पुस्तकों के ग्रनुवाद करना कोई साधारण कार्य नहीं हैं और काव्यमय सुन्दर पद्यों में अनुवाद करना तो और भी कठिन होता है । इन कवियों और इनके प्राश्रयदाताओं का उत्साह देखिए कि इन बड़े-बड़े ग्रंथों का पूरा अनुवाद किया। गीता, भागवत ग्रादि के अनुवाद तो होते ही थे किन्तु मत्स्य के कलाकारों ने ग्राज से दो सौ वर्ष पहले रामायण और महाभारत जैसे भीमकाय ग्रंथों के अनुवाद भी कर डाले ।
१५. भाषा भूषण की टीका- भाषा भूषण की तीन टीकाओं के नाम मिलते हैं - १. बंसीधर को, २. प्रताप साहि की, ३. गुलाब कवि की । किन्तु किसी स्थान पर अलवराधीश विनयसिंह की टीका का नाम नहीं मिलता। इस टीका के ज्ञान-विस्तार और विद्वत्ता को देख कर चकित रह जाना पड़ता है । टीकाकार का काव्य-ज्ञान बहुत बढ़ा-चढ़ा है तथा काव्य के अतिरिक्त अन्य शास्त्रों में भी उनकी गति है । मत्स्य प्रांत में ही नहीं समस्त हिन्दी प्रान्त में, 'राजाधिराज बस सुत विनयसिंह' की टीका निश्चय ही अत्यन्त उत्कृष्टकोटि की है ।
१६. चरनदासी साहित्य यह साहित्य प्रकाश में ग्रा चुका है और यह प्रमाणित हो चुका है कि चरनदासजी और उनकी शिष्याओं द्वारा सगुण-निर्गुण का उत्कृष्ट समन्वय उपस्थित किया गया था । इनको समाधान इतना अच्छा है। कि भक्ति के इन दोनों अंगों में कोई झगड़ा ही नहीं । इस साहित्य में जहाँ एक
र निर्गुण संतों की वाणी का आनंद मिलता है वहाँ दूसरी ओर भगवान के सगण रूप की लीलाओं का सरल वर्णन भी मिलता है। इनकी धारणाएं दृढ़ हैं और भक्ति के इन दोनों अंगों में किसी प्रकार का विरोध दिखाई नहीं देता ।
१७. रामगोतम् - गीत गोविंद की कोटि का रामगीतम् भी दृष्टव्य है । इसके वर्णन हरिप्रौधजी के पथ-प्रदर्शक से लगते हैं । शार्दूलविक्रीड़ित छंद का उदाहरण देते हुए राधा की सुन्दरता के वर्णन से समानता ग्रन्यत्र दिखाई जा चुकी है । संस्कृत काव्य होते हुए भी यह ग्रंथ हिन्दी वालों के लिए भी सुगम है । यह ऐसा ही ग्रन्थ है जैसे तुलसी की संस्कृत गर्भित प्रार्थनाएं ग्रथवा हरिप्रौध के संस्कृत-गर्भित प्रिय प्रवास के अनेक प्रसंग |
१८. गद्य साहित्य - मत्स्य में गद्य भी प्रचुर मात्रा में मिला । एक गद्य
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