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________________ २३८ अध्याय ६ --गद्य-ग्रंथ राजा ने कहा ऐ पुत्ली उस हिम्मत और सषावत का वियांकर । पुत्ली ने कहा कि एक रोज एक जोगी वाग राजा के में बारद हुआ.. .. नज्म- जो देषा कि आलूदैहै षाक से । किया उसने दर्याफत इन्द्राक से। कि यह भी बेशक खुदा दान है। जवी से अयां नूर इर्फान है ।। पुत्ली ने कहा कि ' राजा भोज अगर एसी हिम्मत और सपावत रषता हो तो इरादा बैठने इस तख्त का कर।' पुस्तक के अंत में लिखा है _ 'तमाम हुई किताब सिंहासन बत्तीसी वमूजब फरमाइश महाराजे वजेन्द्र सवाई बलवंतसिंह बहादुर के ।' इस तख्त का इतिहास इस प्रकार बताया गया है --- 'किस्सा कहने वालों जमाने के नै इस दास्ता कू यौ जीनत तहरीर वषशी है कि एक रोज श्री महादेवजी और गौरा पार्वती कैलाश बैठे थे कि गौरा पार्वती ने अर्ज किया | महाराज तबीयत मेरी वास्ते सुनने अहवाल किसी राजा बड़े के अदल और इनसाफ में कोई उसके बराबर हुआ न हुआ होय चाहती है। महादेवजी ने जो बास पातर उनका बीच सब का मौके मंजूर था फरमाया। नरम- है मुझ कू पारा षातर यहां तलक । आनै न कलाम कं मूतलक जब तलक ।। मुतवजे गोश दिल से हो मेरी तरफ अशोक । पूरी हो दास्तान मुरब्बत वहीं तलक । पेश्तर इसके जमानै पहले मैं तमाम देवता मुत्तफिक हो के एक तषत विल्लौरी जवाहर से प्रारास्ता करके रूबरू मेरे लाए। मैने कबूल नजर उनके का करा पीछे मुद्दत बहुत के राजा इन्द्र वास्ते मुलाकात के गया था मैंने उसकू वष्शा और राजा इंद्र ने उस तषत कू राजा विक्रमाजीत कू" १. फितरत ने अपने बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं दी है। इधर-उधर पता लगने पर मालूम हुआ कि फितरत साहब शहर भरतपुर के निवासी थे और उनका घर नगर के बीच में स्थित गंगा मन्दिर के पास था। यह संस्कृत और फारसी के विद्वान थे तथा हिन्दी और उर्दू में भी अच्छी योग्यता रखते थे। २. सिंहासन बत्तोसी नाम का यह ग्रन्थ १८८ पत्रों में लिखा हुआ है। ३. लेखक का दावा है कि उसका लिखा यह ग्रंथ उर्दू भाषा में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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