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________________ मत्स्य-प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन २३७ इसमें सन्देह नहीं हो सकता, किन्तु स्वयं विनयसिंहजी ने इस टीका को किया हो इसमें भारी संदेह है । यदि यह कहीं सम्भव हुआ हो और राजा ने स्वयं ही टोका के रूप में इस उत्तम पुस्तक की रचना की हो तो इसे साहित्य में एक चमत्कार ही मानना चाहिये । . गद्य में लिखा हुआ कुछ कथा साहित्य भी मिला। सिंहासन बत्तीसी के कई हिन्दी संस्करण गद्य-पद्य में देखें, किन्तु हमें "फितरत' का लिखा 'सिंघासनबत्तीसी' नामक ग्रंथ देख कर बहुत प्रसन्नता हुई । पुस्तक का प्रारम्भिक अंश इस प्रकार है श्री गणेशाय नमः । पोथी सिंघासन बत्तीसी उर्दू में सबब लिखने इस दास्तान का जो अकसर औकात गुंचा दिल का व सवब चले व बाद मुषालफ जमाने के वस्तगी तमाम रखता था और नैरंग साजी चरषाकीसै किसी काम में न लगता था नाचार वास्ते तफरीह षातर और चसपीद गीतवे के यह षियाल दिल पर गुजरा कि किताब सिंघासन बत्तीसी कू कि हिकायतै नाद रखती है और आज तक किसीने बीच जबान उरदू के तरजमा नहीं किया लिखा चाहिये कि बहर हाल पढ़ने उसके से दिल कू फरहत ताजै. हासिल हौ। इस वास्ते वंदे मुत्पल्लिक 'फितरत' नै बीच षते दिलकुशा भरतपुर के बीच अहद महाराजधिराज व्रज इंद्र सवाई बलवंतसिंह बहादर-बहादर जंग के तरजमा कीया और कसीदा मदद का माफक है सिले अपने के वास्तै नजर के लिषता हूं कि बीच सिलै उसके यह अफसाना नादर कि मुसम्मा व बाग बहर है नज । फैज़ असर से गुजर के मौरदत हंसी का होवे ॥ प्रस्तावना कुछ कठिन सी मालूम देती हैं किन्तु लेखक ने जिस भाषा का प्रयोग आगे किया है वह आसानी से समझ में आ जाती है । “हिकायत पुत्लो दहम की मदन मंजरी नाम 'रोज दीगर कि राजा भोज ने तमन्ना और रंग नशीनी की की पुत्ली दसवीं ने कि मदन मंजरी नाम रखती थीं कहा कि झै राजा भौज जो कोई. कि. मानंद राजै विक्रमाजीत की ऐसी हिम्मत और सपावत रषता होये कि जैसी उस्ने ब्रह्मन करी वुलमर्ग क समर जा बख्श दीया और दफे अजीयत किया तो वह इस औरंग पर बैठे। १ ऐसा प्रतीत होता है कि यह पुस्तक मूल रूप में 'उर्दू जबान' में थी। कुछ ही समय बाद इसे नागरी लिपि में लिखा गया। इसे लिपिबद्ध करने वाले 'गोरधन सूरध्वज' थे। लिखने का समय १८६७ दिया हुआ है और महाराज बलवंतसिंह का राज्यकाल १८८२-- १९०६ वि० है। यह पुस्तक एक बड़ी सुन्दर जिल्द में सुरक्षित है।' संभवतः यह सिंहासन बत्तीसी का प्रथम उर्दू अनुवाद है जैसा रचयिता भी स्वयं अनुमान करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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