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अध्याय ६ -- गद्य-ग्रंथ
सोभनाथ, जाचीक जीवन, सूदन आदि में इस प्रकार के प्रयोग मिलते हैं ।। गद्य में ब्रजभाषा छोड़कर अन्य कोई विशेष प्रवृत्ति नहीं देखी जाती। ३.. टीका बहुत ही उत्कृष्ट कोटि की है
(अ) इस टीका को सरलता के साथ समझा जा सकता है। (आ). इस में दिया गया. विवरण. लेखक की काव्य-शास्त्र
प्रतिभा का द्योतक है। (इ) भाषाभूषण की सुंदरतम टीकानों में इसका स्थान
होना चाहिये। ४. इस टीका में संख्या आदि देने में बहुत सावधानी की गई है। गुणन ठीक और विधिवत् हुए हैं, जो मूल में नहीं हैं। टीका में बहुत सी बातों को शामिल कर दिया गया है। अवतरण शुद्ध और यथास्थान दिये गये हैं । मूल को समझने में टीका द्वारो मूल्यवान सहायता मिलती है। एक प्रकार से इस टोका द्वारा मूल पुस्तक की सम्मान-बृद्धि हुई है।
५. टीका की इन सब विशेषतानों एवं उत्कृष्टता के कारण हमारा अनुमान है कि इस टीका का लिखने वाला कोई बहुत ही विद्वान तथा काव्यशास्त्र-मर्मज्ञ कवि था जिसका अध्ययन, भाषा पर अधिकार तथा काव्यज्ञान बहुत उच्च कोटि का था । टीका को देख कर इस बात के मानने में बहुत कठिनाई होती है कि महाराज विनय सिंहजी द्वारा। इस प्रकार की रचना की जा सकी हो। उस समय के राजाओं में काव्यप्रेम अवश्य था किन्तु कवि और लेखक के रूप में बहुत कम राजा मिलते हैं। हमारा अनुमान है कि महाराज विनयसिंहजी के किसी विद्वान पंडित ने जो राज्य के आश्रित रहा होगा यह टीका लिख कर अपने आश्रयदाता के नाम से प्रचलित करा दी होगी और इस प्रकार के अंश बढ़ा दिए होंगे जैसे
राजाधिराज वषतेस सुत विनसिंह टीका करत ।। इसमें कोई संदेह नहीं कि महाराज विनयसिंहजी विद्वानों का बहुत आदर करते थे और उनके सम्बन्ध में अलवर राज्य के इतिहास-प्रेमी पंडित पिनाकीलाल जोशी ने अपने इतिहास में लिखा है'महाराज विनयसिंहजी के सुशासन में देश-देश के विद्वान, शिल्पकार तथा संगीतशास्त्र के ज्ञाता अलवर में आये और महाराज उनके गुण ग्राहक हुये।'
महाराज विनयसिंहजी ने भी उस विद्वान की पूरी सहायता की होगी
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