SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मत्स्य-प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन प्रकृति होय । छह प्रांगुर की धरनी होय । और सीप स्वसी की पुरी रेषा तद्वत् अनंगभूमि होय । पोहप-माल आसन की रुचि होय । स्वेद में कमल पुष्पादिकिन की सी सुगंधि होय । सुरति समै विमल स्थान, निमल सेज भूषन वस्त्रादि विमल भावै। गति हंस की सी मंद होय । नषस्पर्श नपानपात, कपोल-चुंबन, नेत्र-चुंबन की रुचि होय । यह लछिन पदमनीन के हैं ॥ १ ॥ अथ चित्रनी लछन.... ." इस प्रसंग में चित्रनी, हस्तनी, संषनी आदि स्त्रियों का वर्णन इसी विस्तार के साथ किया गया है । निश्चय ही यह टीका बहुत ही विद्वत्तापूर्ण है। पुस्तक में स्वकीया आदि नायिका के भेद भी देखने योग्य हैं “स्वकीया नायिका के भेद । १३ । परकीया । ३ । ऊढ़ा अनुढा । सामन्या। १६ । प्रोषित पतिका । १० । १६४१०=१६० उत्तम मध्यम अधम १६०४३=४८० दिव्य अदिव्य दिव्यादिव्य ४८०४३=१४४० १४४०४४ =५७६० ५७६०४८=४६०८० ४६०५०x४=१८४३२० १८, ४ १,३२,७१,२४० भेद" इस प्रकार एक करोड़ बत्तीस लाख इकहत्तर हजार दो सो चालीस प्रकार की नायिकाएं बताई हैं। इस टीका के संबंध में कुछ बातें-- १. टीका की भाषा स्वच्छ और विशुद्ध ब्रजभाषा है। अलवरनरेश बोलचाल की भाषा का प्रयोग न करके उस समय की साहित्यिक भाषा का प्रयोग करने में बहुत सफल हुए हैं । हम देखते हैं कि टीका में (अ) भाषा का रूप बहुत निखरा हुआ है। (आ) विराम चिन्ह (कम से कम पूर्ण विराम) यथा स्थान लगाए गए हैं। (इ) शब्दावलि तथा क्रिया के रूप अपेक्षाकृत व्यवस्थित हैं । (ई) तत्सम शब्द शुद्ध लिखे गये हैं । २. उस समय सम्पूर्ण मत्स्य प्रदेश में, गद्य में भी, ब्रजभाषा का हो प्राधान्य था । गद्य और पद्य दोनों में यही भाषा चलती थी। खड़ी बोली के प्रयोग गद्य की अपेक्षा पद्य में अधिक दीख पड़ते हैं। उसका कारण है मुसलमान तथा अंग्रेजों के द्वारा खड़ी बोली का प्रयोग करना। सोमनाथ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy