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________________ २२० अध्याय ५ - नीति युद्ध इतिहास - सम्बन्धी शिकारखाने के एक कर्मचारी ने शेर की शिकार पर लिखा है हुकम करोला पाय, भैंसा बांध्या समझ कर पहौच्या लशकर आय, भाल लगी केहरि तरणीं ॥ सझयो भूप शिकार, लेय दुनाली हाथ में । धन जय श्री अवतार, वीरा रस राषरण घणीं । छांडे नांही रीत, महाराणि राठोर जी । हिये हरष मन प्रीत, चड़ चाली प्राषेट में ।। घणी धिराणी मुदित मन गणपति हिय हरषाण । हाल शिकार बषानियों, निज मति के अनुमान ॥ इस शिकार में महारानीजी भी साथ थीं। शिकार-सम्बन्धी कई पुस्तकें महाराज जयसिंहजी के संग्रह में मिली, किन्तु वे सन् १९०० ई० के बाद की लिखी गई हैं अतएव उन्हें छोड़ दिया गया है । ये कुछ अवतरण भी इसी दृष्टि से दिए गए हैं कि मत्स्य की रियासतों में इस प्रकार की काव्य-प्रवृत्ति भी चलती थी । इन रचनाओं का साहित्यिक अथवा काव्यात्मक मूल्य चाहे बहुत कम हो किन्तु एक शिकारी के हाथ से लिखी हुई पंक्तियां अपना अलग ही मूल्य रखती हैं । इस प्रसंग में दो पुस्तकों का वर्णन और लिख कर इस अध्याय को समाप्त करने को बाध्य होना पड़ता है क्योंकि यदि अन्य प्रसंग भी इकट्ठे किए जायं तो छोटी-बड़ी बहुत-सी पुस्तकें इस अध्याय में स्थान पाने की अधिकारिणी हैं । १. सभाविनोद - कवि सोभनाथ कृत । अभी-अभी जीवाराम के सभाविलास का उल्लेख किया था। इसमें अनेक प्रसंगों को लेकर कवि ने अपनी काव्य-प्रतिभा द्वारा राजा को प्रभावित करने की चेष्टा की थी । सोभनाथ की इस पुस्तक 'सभाविनोद' में बहुत से विलक्षण विषय हैं जिसमें 'पक्षी - साहित्य' अपना विशेष स्थान रखता है । पक्षियों के साथ वृक्ष और सरोवर के भी उत्तम प्रसंग हैं । ग्रंथकर्ता ने यह पुस्तक पांच विलासों में बांटी है १. ग्रहाक्तिवर्ननो नाम प्रथमो विलासः २. नाइका नाइकोक्ति द्वितीयो विलासः ३. तरवरोक्ति तृतीयो विलासः ४. पंछी विलास चतुर्थो विलासः ५. तरक तरोवर सभाविनोद पंचमो विलासः Jain Education International For Private & Personal Use Only दोहा संख्या ५२ ६१ १६३ ५७ १६८ www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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