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________________ २१६ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन पुस्तक भी देखने में आई जिसकी रचना-तिथि १८८६ है ।' शिकार के कुछ अन्य प्रसंग देखिए धौली जो मीम साथ थी कहने तो फिर लगी। हथनी भी ये हमारी आज क्यों नहीं भगी। अल्लाह ऐसी तमन्ना उनकी निकालना । जिनको ये हिर्स हो कभी उनही पै डालना ।। वल्लाह यक अवाज जो सब लोग पुकारे। ऐसी जगह से दिल ने कहा वापिस पाइयै ।। कलेजा भी उछल कर के सीधा मुंह में आ गया। हया ने कहा ठर गोली तो चलाइये। उठ कर जो मैंने हिम्मते मरदां को संभाला। बंदूक उठाई तो फिर लगती ही पाइये ।। प्रए यार अब इस नजम का तो पा गया अषीर। पस दूसरी तरकीब से किस्सा चलाइये ॥ यह वर्णन सन् १६०० का है । कहा जाता है महाराज जयसिंह ने ये पंक्तियां स्वयं लिखी थीं। १८, २० साल के इस शिकारी राजा की भाषा देखने योग्य है । महाराज जयसिंह हिन्दी और उर्दू दोनों में लिखा करते थे। उर्दू में वे अपना उपनाम 'वहशी' रखते थे। मैंने इनके द्वारा लिखी जो दो नोट बुकें देखी उनमें हिन्दी के अक्षर बहुत स्पष्ट लिखे हुए हैं। शिकार का ऊपर लिखा वर्णन उसी नोट बुक से लिया गया है। चौबे जीवाराम बलवंतसिंह के दरबार में थे। जमादारी पाने के लिए इन्होंने सभाविलास, नाम का एक ग्रंथ लिखा जिसमें ऋतुओं का सुन्दर वर्णन है । इस ग्रंथ को एक प्रार्थना-पत्र समझना चाहिये सरनि जो पावै ताको पोसन भरन करो , हरन कलेस तैसो अवध बिहारी है। जाकी प्रभूता की सीलता की को बड़ाई करे , हो दुख दछ यह नीति उर धारी है ।। बडो उपगारी जाकी कीरति उज्यारी प्यारी , श्रीमन वृजेंद्र पे सहाय गिरधारी है। चौबे जीवाराम ताकी कीजय जू जमादारी , अरजी हमारी जो 4 मरजी तुम्हारी है । अलवर के संग्रह में भी हमें इसी प्रकार की एक अन्य हस्तलिखित पुस्तक मिली जिसका नाम 'अभिनव मेघदूत' है । यह भी एक प्रार्थना-पत्र के रूप में है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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