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________________ २१८ अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास-सम्बन्धी बिराजे सवाई जयसिंह राजगद्दी । दोस्त खुशहाल हुए दुश्मनकुल रद्दी ।। पुस्तक का प्रथम भाग, काव्य की दृष्टि से, अधिक अच्छा है। इस भाग में स्थान-स्थान पर गद्य भी मिलता है। ब्रजभाषा गद्य का एक अच्छा नमूना देखिए 'असी सलाह कर स्वरथ हटाय अधिपति को अश्व प्रारूढ़ करत भये । अरु याकी एवज इम पै असवार राव रत्नसिंह रतलामधीश के सीस पर छत्र धरत भये ।' शिकार का शौक सभी राजाओं को रहा । शेर, शूकर, डक, मगर अादि का शिकार आये दिन होता रहता था। शिकार के लिए बड़े-बड़े अंग्रेजों को भी आमंत्रित किया जाता था। शिकार के लिए कुछ निश्चित स्थान थे जहां का काम नियमित रूप से बराबर चलता रहता था। राज्यों में शिकारगाह' नाम से एक अलग विभाग रहता था । मत्स्य के राजारों में शेर का शिकार बहत प्रचलित रहा। करौली के राजा तलवार से सिंह का शिकार करते हुए सुने गए हैं । भरतपुर में बारैठा और अलवर का सिरसका शेर के शिकार के लिए बनवाए विशेष स्थान हैं । चिड़ियों का शिकार भी होता रहता था । भरतपुर का केवलादेव डक की शिकार के लिए बहुत प्रसिद्ध है। भारतवर्ष में डक-शूटिंग के लिए भरतपुर का केवलादेव एक मशहूर स्थान है। अंग्रेजों के जमाने में गवर्नर जनरल तथा कमाण्डर-इन-चीफ इन चिड़ियों के शिकार के लिए नियमित रूप से भरतपुर में आते थे। भरतपुर में एक छोटी छत्रीनुमा इमारत है जिसमें इस बात का उल्लेख है कि किस शिकार में कितने डक मारे गए। 'बहरी' की सहायता से की गई व्रजेंद्र की प्राखेट सवारी देखिए चलत सवारी सिरदारी सब संग लेके , सीर श्री सिकारिन की सांची ही सरति है। मारत कबूतर ढूंढि ढूंढि प्रासमान में ते, बगुला के झगुला से फारिके धरत है। कहै जीवाराम करै बाज ते सरस काज , तब टूट फूटि काहू पंछी पं परति है। श्रीमति वजेंद्र जु तुम्हारे कर में ते उड़ि , बहरी कुलंगन की किरचें करति है ।। यह शिकार बहरी चिड़िया की सहायता से किया गया है। इसके लेखक चौबे जीवाराम एक अच्छे लिपिकार थे। साथ ही ‘सभा-विलास' नामकी एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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