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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन २१७ को जो उनके दो सोरठे लिखने पर ५०० रु० इनाम मिला उसका वर्णन भी अपने इस इतिहास में किया है शेर की शिकार शौक करनी दिल धारी । की गढ़ खुशाल सरिसके की तयारी ॥' करिक वह हमला उड़ि फील पं ज्यूं आया । मारि मंगलेश भूप बीचि ही गिराया ॥ बारहठ शिवबख्श दोय दोहरा सुनाया। अता रुपया पन्ज सद इनाम फरमाया ॥२ पुस्तक में एक जगह जहाज का वर्णन भी आया है, जब अलवर नरेश कलकत्ता से पानी के रास्ते से मद्रास गये थे देखी विलायत की एक उसमें गाय ऐसी। वह थी हकीकत में कामधेनु जैसी। खली खोपरे की खास खाने को देते । दिल चाहा उसी वक्त दूध काढ़ लेते ।। कितने उसमें भरे मुर्ग और भेडी । चारसद करीब अंग्रेज मैम लेडी।। इस पुस्तक को पढ़ने से पता लगता है कि शिवबख्श ने असली हालात देने की चेष्टा की और अंग्रेज का हुक्म पा कर तथ्यों को निष्पक्ष रूप से लिखा। यदि अलवर का प्रस्तुत इतिहास बनाते समय इस पुस्तक से सहायता ली जाती तो वास्तव में बहुत-सा सच्चा इतिहास प्रस्तुत हो सकता था । इस पुस्तक के दोनों भागों में, जो एक ही लेखक द्वारा लिखे गये हैं, बड़ा अन्तर है । प्रथम भाग में ब्रजभाषा और हिन्दी छन्द तथा दूसरे में खड़ी बोली और उर्दू छंद । पुस्तक को समाप्ति संवत् १६६१ वि० है। महाराज मंगलसिंहजी को मृत्यु होने पर उनके 'कारज' का वर्णन इन शब्दों में किया है लड्डू रुपया दस्त जिसने प्रोट लीना। तकसीम रेल के मुसाफिर तक कीना ॥ ' सिरसका अलवर शहर से २२ मील दूर है और शेर की शिकार के लिए बहुत उपयुक्त स्थान है। पिछले महाराजा ने यहां 'सिरसका पैलेस' नाम का एक स्थायी स्थान बनवा दिया था। इसका शिलान्यास तो राजा मंगलसिंहजी ने ही कर दिया था । २ दोहरे अन्यत्र दिए गए हैं। ये सोरठिया दोहरे राजस्थानी में हैं। इनसे सिद्ध होता है कि राजा को विकार का बहुत शौक था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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