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मत्स्य-प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
२११ है। इसीलिये ये दोनों पुस्तकें इतिहास-प्रकरण में ली गई हैं ।
१ सुजान संवत--उदय राम' कृत । कवि ने अपना नाम एक विचित्र प्रकार से दिया है--
प्रात सूर सो होत है, ताके आगे राम ।
द्वं जुग अछिर चारि करि, सौ कविता को नाम ।। इससे पता लगता है कि 'उदैराम' कवि का 'कविता को नाम' अथवा उपनाम है। उनका असली नाम कुछ और रहा होगा जो बहुत खोजने पर भी मालूम नहीं हो सका । उपर्युक्त दोहे के उपरान्त लिखा है--
यह बरनन जाने कीयौं, नाम धर्यो निज नाहिं ।
जानि लेहु नर वर चतुर, पिछले दोहा मांहि ।। पिछले दोहे में सूर का 'उदै' होना बताया गया है और उसके आगे 'राम' रखने को कहा गया है । इन 'द्वै जुग' अर्थात् दो जोडों के चार अक्षरों से कवि का कविता नाम 'उदैराम' बनता है । आरंभ में भी कवि के नाम का कुछ आभास मिलता है, जब वे स्तुति करते हैं
वाक्य विनाइक नाइ सिर, सुमरि विप्र सुर संत । गुर-पद प्रेम प्रताप बल, वानी विमल फुरंत ॥ सुंदरि प्रवीन रूप जौवन नवीन सौ है , लीये कर वीन 'उदै' अषिल अवगाहनी। चंदन चढ़ायें तन कुंदन सुगंधन सों, सोधे वर चीर चारु चंचल दृग चाहिनी ॥ सोहत सुकुमार उर फूलन के हार बार , बेनि सों सुढ़ार मोती जोती हस वाहिनी । वसो उर प्राइ मेरे कंठ सुष पाइ सदा ,
सहाय रहै कविन कुल दाहिनी ॥ पुस्तक-निर्माण का समय इस प्रकार दिया गया है
षांस [पौस] मास एकादसी, संवत ठाहरु बीस , नृप लीला करि लै भये, कान सुजान नहीस ।। मनमति को संवाद यह, संवत् स्याम सुजान । कवि यासै उरधार कछु, कीयो कवित बखान ।।
, उदयराम (उदराम)--भत्ति-काव्यों में इसके तीन नाटकों का उल्लेख हो चुका है ।
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