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अध्याय ५ -- नोति, युद्ध, इतिहास-संबंधी दर्शन भी मिल जाता है। इस विवाह में बलवंतसिंहजी ने बहुत दान दिया। कवि-समुदाय के ऊपर तो विशेष कृपा की
कारे कारे काली के से वारे मतवारे प्यारे , जोरदार मारे घूमें नृप के निकेत हैं। नद्दत द्विरद नभ गज्जत जलद्द मानों , थल थल थलकत भूतल सचेत हैं । जिनके चलत मद छल छल छनकत , झल झल झलकत सुंड मुष लेते हैं। श्रीमंत व्रजेंद्र बलवंत के अनंद होत ,
असे गजराज कविराजन कों देत हैं। और इसी प्रकार के घोड़े भी दिए । यह बलवंतसिंहजी के प्रथम विवाह का वर्णन है
महामोद बरसे विविध, दीर्घ दुग्ग के माह ।
श्री वृजेन्द्र बलवंत को, भयो सुप्रथम विवाह ।। कवि का आशीर्वाद
संपति देस विदेमन की सबै आय बसी बलवंत के गेह में ।
सुंदरता सुष राज दराज गनेस कहैं विलसौ नित देह में । और अंत में लिखा है'बलदेव नंद श्री वजेन्द्र बलवंतसिंह चिरंजीव होउ मारकंडे की उमर के।'
इस पुस्तक की पत्र-संख्या ७७ है और इसमें विविध प्रकार के २२४ छंद हैं। यह पुस्तक विलायती कागज पर लिखी हुई है जिसमें वाटरमार्क है
_ 'जी बिलमौट मेड इन १८३४ ए. डी.।' इतिहास-संबंधी दो पुस्तकें और मिलीं-१ सुजानसंवत, जो यद्यपि पद्य में है किन्तु उसका महत्त्व ऐतिहासिक है। २ अलवर राज्य का इतिहास । यह पहले कहा जा चुका है कि मत्स्य प्रदेश में लिखे वीर-काव्यों में भी बहुत कुछ ऐतिहासिक सामग्रो मिलती है। यह देखा गया था कि प्रताप रासो प्रतापसिंहजी के संपूर्ण जीवन का एक प्रामाणिक वर्णन उपस्थित करता है और इसी प्रकार यद्यपि सुजानचरित्र प्रधान रूप से युद्ध-काव्य है फिर भी उसमें अनेक ऐतिहासिक बातों का उल्लेख है जो सूरजमलजी के समय में घटित हुईं। सुजानसंवत् में सूरजमलजी के शासनकाल का पूर्ण विवरण है और शिवबख्शदान के बनाये हुए 'अलवर राज्य का इतिहास' में मंगलसिंहजी के समय तक का इतिहास
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