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मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन
२०६ करी है प्रथम श्री बिहारीजी की झांकी।
वेस पूजे व्यंकटेश महाराज भले भाय के ।। बरात के पहुंचने पर फव्वारे चला दिये गये--'
छुटत फुहारे न्यारे न्यारे सब भौनन में । गुलाल का वर्णन
किस्ती हैं अनेक संग रोरी पो गुलाल लाल , ललकि ललकि लेत हेत सों उड़ाते हैं। लाल लाल भई अवनी अकास आस पास , लाल लाल है दिवाल रंग घुमडाते हैं। लाल ही लाल हाथी लाल ही सकल साथी , लाल ही बराती लाल रंग उमड़ाते हैं। लसंटीन साहब को लाल मुष लाल भयो ,
लाल लाल बादल की छबि कौं छुड़ाते हैं ।। 'लसंटीन साहब' विशेष रूप से शामिल हुए थे। विवाह के समय महाराजा के दोनों मथुरा-पुरोहित भी थे
'रसिक लाल जी स्यामजी अति प्रानंदत चित्त ।' और कवि गणेश के दो पुत्र भी उपस्थित थे
कवि गणेश-सुत दोइ हैं, हाजर ताई ठाम ।
लक्ष्मीनारायन जु इक, दूजो सालिगराम ॥ स्त्रियों का समारोह
आछी आछी नवल बधूटी ते झरोका लागी , देषि श्री व्रजेंद्र को प्रानंद बरसाती हैं। नामें लेत गारी देत हेत सों हंसावें सबै , सकल बरात की सिरात जात छाती है। गाती हैं गुमानभरी गोरी गोरी गोरी सबै , सीठना सुनाती देषि दूल्है मुसकाती हैं। रंग बरसाती हैं अनंग सरसाती हैं ,
नैन षंजन नचाती मीठे बचन सुनाती हैं।। इस कवित्त में खड़ी बोली के प्रयोग देखने योग्य हैं। अन्तिम पंक्ति तो एकदम खड़ी बोली है । भरतपुर के कवियों में इस प्रकार यदा-कदा खड़ी बोली का
'डीग के भवनों में लगे हुए 'फव्वारे' बहुत प्रसिद्ध हैं। इनको विशेष अवसरों पर अब भी
चलाया जाता है। यह फव्वारे रंग-बिरंगे भी हो सकते हैं । महाराजा के समय में यह छटा देखने योग्य होती थी।
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