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अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास-संबंधी संवत् १८२० सूरजमलजी का निधन-संवत् है। इससे यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि इस पुस्तक में सूरजमलजी के शासनकाल का पूर्ण विवरण है। ___ इस पुस्तक में बारह विलास हैं और इस काव्य को वीर-काव्य तथा इतिहास का मिश्रण समझना चाहिए । इसमें सुजान चरित्र से आगे की घटनाओं का भी वर्णन किया गया है। सरस्वती की वन्दना के उपरान्त कवि अपने इस काव्य का प्रारम्भ करता है
भारती भमानी जगरानी बाक बनी बैठि. कविन के कंठनि कमलासन बिछाइये। लके कवीन सों प्रवीन सुर तान मान ,
करिके सयान पै सुजान गुन गाइये ।।' पुस्तक के १२ विलास इस प्रकार हैं
१. सुजानसंवत वरननो नाम प्रथमो विलास, २. जदुवंस-वर्नन, ३. जगमोहन वर्णन । सूरजमलजी के जन्मोत्सव का वर्णन, ४. परताप वीर वरनन, ५. सुराज वर्नन, ६. विविध, ७. गिरिवर लीला, ८. गढ़वर वरनन, ६. छह रितु-राज-वर्नन, १०. बृज वृन्दावन फाग, ११. विज विवाह वरनन (युद्धों के वर्णन सहित), १२. उपसंहार (मृत्यु)।
सुजान संवत् की जो प्रति हमें प्राप्त हुई वह संवत् १८७६ की लिखी हुई है
'मीति चैत्र सुदि १४ भृगुवासरे संवत् १८७६ शा० १७१७ लीषतं बहामन तुहीरामः पारासर । लोषीयतं फौदार हरदे फौदार । पत्र
१ यह एक दुखद प्रसंग है कि आज के कवि इन पूर्ववर्ती कवियों की रचना को अपनी मौलिक रचना बता कर जनता को भ्रम में डालते हैं। यह कवित्त मैंने स्वयं एक अच्छे कवि से उनकी रचना के रूप में सुना था।
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