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________________ २०० अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास-संबंधी ताही जदुकुल बंस में, कितिक साष के अंत । प्रगट भो जवंस में, श्रीपति श्री भगवत ।। उसके उपरान्त प्रद्युम्न, अनिरुद्ध आदि-- ताके कुल में भूपति, किते भये, गए सरलोक । व्रज भगवत ता वस में, उपजे सुष के नोक । ता व्रजराज के सुत प्रगट, भावसिंह नरनाह । ताके भए बदनेस सुत, अनगन गुननि अथाह ।। ज्यौं बदनेस पवित्र घर सूरजसिंह कुमार ।। इस पुस्तक में सूरजमल जी की बहुत कुछ प्रशंसा लिखी गई है । इनकी प्रशंसा में कवि ने एक अन्य पुस्तक 'सुजान विलास' भी लिखी है जिसकी ओर कवि ने इस पुस्तक में संकेत किया है प्रथम सु ताहि असीस करि, उपज्यौ हिये हुलास । सूरजमल के नाम कौं, रच्यौं सुजान विलास ॥ इसके पश्चात् कथा का प्रारंभ होता है।' पुस्तक समाप्त होने का समय १८१२ वि० है ठारह से बारह गनौं, संवत्सर घर सर । सांवरण बदि की तीज कौं, कियौ ग्रंथ परिपूर ।। प्रत्येक कहानो के पश्चात् निम्न चार पंक्तियां दी गई हैं बदनेस श्री ज दुवंस भूपति सकल गुणनिधि जांनियै । जिहि परिन के बल षंड कीने कृष्णभक्ति वषानिये । जिहि सुवन लाल सुजान सिंघ विलास कीरति छाइये। कवि अषराम सनेह सौं पूतरी सिंघासन गाइये ।। इस प्रकार के बत्तीस अध्याय हैं । पुस्तक के अन्त में लिखा है 'इति श्री सिंघासन बत्तीसी कवि अपैराम कृते नाम द्वात्रिंशतमो ध्यायः ३२ मिती फागुन बदी १० में समाप्त भयो ।' जो हस्तलिखित प्रतियां मिलीं वे अनेक व्यक्तियों के लिए लिखी गई हैं । उदाहरण के लिए एक के अन्त में लिखा है 'पुस्तक लिखी चिरंजीव लालाजी श्री कलूरामजी के पठानार्थम् सुभचिंतक गुसाई बालगोविंद के हस्ताक्षर शुभं भूयात । श्री श्लोक संख्या २००० पत्र संख्या २५० ।' , इस स्थान पर किसी ने हाशिये पर लिखा है 'अन्य प्रतियों में कवि परिचय भी है। इसका विवरण 'विक्रम विलास' के अन्तर्गत दिया जावेगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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