SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मत्स्य-प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन १६६ गया है । इस बाग में पहले फल-फूल वाले अनेक प्रकार के पेड़ थे और कवि ने भी लता, वेलि, फूल, फल, वृक्षों आदि का वर्णन किया है। वर्णन करते समय कवि को ऋतु-कुऋतु का ध्यान नहीं रहता । यह उस समय की प्रचलित प्रणाली थो जिसका आभास कभी-कभी अब भी मिल जाता है, जैसे-अयोध्यासिंहजी के 'प्रिय प्रवास' में । एक वर्णन देखिये-- तिहिं नगर कूल । बह बाग फल ।। केतकि गुलाब । चमेलि दाव ।। करुना तुही सु । करवीर ही सु ।। सौगंध राय । गुलस जाय ।। गुल्लाल जाल । रविमुष नाल || गुडहर सुचेत । सत गर्व षेत ।। नरगस नवीन । करना सु कीन । झुकि रामनेलि । चम्पा सुहेलि ।। नागेस चारि । फूली निवारी ।। हरिचक भूप । मंजरिय रूप ।। नारिंग नार । कटहर सुठार ।। श्रीफल करौंद । जहं नूत गौंद ।। पुंगी फलानि । लीची इलांनि ।। वल्ली सनाग । लौगनि सुहाग ॥ जामिनि रसाल । इमली विसाल । अश्वत्थ कूल । वट वृक्ष मूल ।। डीग के तालाब' को भी अच्छा वर्णन है। यह तालाब पाज भी उसी तरह पूरे साल पानी से भरा रहता है और डोग-निवासियों के स्नान का सुन्दर साधन है । मकरंद वरषत जेंन । घुमडें अबीर सुझैन ।। बहु मीन तरल तरंग । रवि किरनि परसि परंग ।। चंहु अोर बाग बिसाल [विळास] । कृत कोकिला कलहास ।। तिहिं देषि के सुष होत । उपज सु प्रानद स्रोत ।।' नगर-वर्णन के उपरान्त राजवंश का वर्णन है और भगवान विष्णु से भरतपुर के राजाओं की वंशावलो आरंभ की गई है नारायन की नाभि तें, चतुरानन अवरेषि । अत्रि भयो ता दुगन तें, ता द्रग चंद विसे षि । डीग के भवन, तालाब आदि की सन्दरता सर्वदा से रमणीय रही है। वर्तमान सरकार का ध्यान भी इस ओर गया है और इसे पर्यटकों का विश्राम केन्द्र बनाने की दिशा में प्रयत्न जारी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy