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अध्याय ५-- नीति, युद्ध, इतिहास-संबंधी
सी कथाएं प्रचलित थीं जिनमें सिंहासन बत्तीसी तथा पंचदण्ड कथा बहुत ही प्रसिद्ध हैं। अनेक कवियों ने इस दिशा में प्रयास किया। इन कहानियों द्वारा नीति और वीरता दोनों का ही प्रतिपादन हुअा जिनके लिए विक्रमादित्य का नाम विश्व में विख्यात है। एक प्रकार से विक्रम-साहित्य विश्व-साहित्य में नीति और न्याय का प्रतिनिधित्व करता है । प्राप्त सामग्री में से कुछ का उल्लेख यहां किया जा रहा है
१. सिंहासन बत्तीसी - अखैराम कृत २. विक्रम चरित्र - वैद्यनाथ कृत ३. विक्रम विलास - अखैराम कृत ४. विक्रम विलास - गंगेस (विक्रम-बेताल) कृत
५. सुजान विलास - सोमनाथ कृत . सिंहासन बत्तीसी-विक्रम-विलास और सिंहासन-बत्तीसी लगभग एक सी कृतियां हैं । सिंहासन बत्तीसी में अखैराम ने अपना परिचय प्रादि नहीं दिया है किन्तु 'विक्रम-विलास' के नाम से इन्हीं की लिखो जो हस्तलिखित प्रति मिली उसमें कवि के जीवन से सम्बन्धित कुछ बातों का पता लगता है। अखै राम द्वारा लिखी सिंहासन बत्तीसी की अनेक प्रतियां पाई गईं जिनमें पाठ भेद के अतिरिक्त और भी कुछ घटा-बढ़ी मिलती है। सिंहासन बत्तीसी में कवि ने अपने सम्बन्ध में कम लिखा है
गणपति सुमिरों सारदा, श्री वल्लभ सिर नाय , राधा मोहन ध्यान करि, विक्रम यसहि बनाय । श्री विक्रम नरनाह की, सूजस कथा बत्तीस ,
भाषा करी बरनों तिन हि, कृष्ण चरण घरि सीस ।। यह काव्य 'दीर्घ' (डीग) में लिखा गया था
मथुरा मंडल देश में, निज वृज मध्य सुथान ।
अति ही दीर्घ सुहावनों, अमरपुरी अनुमान ।। डोग (दीर्घ) का विस्तृत वर्णन किया गया है
चहु ओर सघन सुवास । जगमगत जोति प्रकास ॥ अति ही ललाम सुग्राम । चहुघां विचित्रित धाम ।।
झलकें अमंद अवास । जुत चंद्र लाज प्रकास ।। डीग के बाग का सुन्दर वर्णन मिलता है । भवनों के पास' का यह बाग काफी अच्छा था। अब उसके स्थान पर पेड़ों को कटवा कर लॉन लगवा दिया
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