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________________ १८४ अध्याय ५--- नीति, युद्ध, इतिहास संबंधी मरोड़ मिलती है जो अनुकरण वृत्ति को ध्यान में रखते हुए क्षम्य है। चरित्र-चित्रण के गांभीर्य का प्रश्न तो आता ही नहीं। ये तो लड़ाई और मुठभेड़ की बातें हैं जिनमें विजय ही एकमात्र लक्ष्य रहता था। फिर भी पुस्तक के नायक सूरजमल के चरित्र की उत्कृष्टता स्थान-स्थान पर लक्षित होती है । एक प्रकार से तो पुस्तक का ध्येय चरित्र-चित्रण न होकर युद्धवर्णन है। इसमें विभागों का वर्गीकरण "जंग" नाम से हुआ है। पुस्तक की कई हस्तलिखित प्रतियां मिलती हैं। १. मिरज़ा सफदरअली के सफदरी छापाखाना भरतपुर में छपी हुई प्रति। २. राधाकृष्णदासजी के सम्पादकत्व में 'इंडियन प्रेस' द्वारा मुद्रित । पहली पुस्तक काफी प्रामाणिक है जैसा कि प्रकाशक की टिप्पणी से ज्ञात होता है - 'जानो चाहिए कि चतर सुजान परतापवान अतसुभट बड़े धीर रंड जीत महावीर महेंद्र बलदेव नल ब्रजराज्ञ श्री महाराज प्राध्राज व्रजेंद्र सवाई बलवंतसिंह बहादुर बहादुरजंग बैकुंठ वासी ने बडी चाहना और बहुत अवलाष से यह पोथी पवत्र सुजांन चरित्र छपानी करी थी और विशेष करके इसके छपाने में यह अवलाषा थी कि हमारे बाप दादा और पुरषानों की बहादरी और साखे मुल्कगीरा का हाल सब छोटों और बड़ों पर जश प्रकाशत होइ.........।' इस पुस्तक पर राज्य के प्रमुख व्यक्तियों के हस्ताक्षर भी हैं जिससे इसकी प्रामाणिकता घोषित होती है। ऐसा प्रतीत होता है कि 'सुजानचरित्र' के अनेक पाठ मिलते होंगे, अथवा वर्णनों में कहीं भ्रामक बातें रही होंगी। उन सब की छान-बीन की गई और सफरदजंग छापेखाने से जो मुद्रित प्रति मिली उसे प्रामाणिक मानना चाहिए। किन्तु प्रस्तावना की भाषा पढ़ने से विदित हो गया होगा कि प्रचलित पुस्तक में लिपि सम्बन्धी अनेक अशुद्धियां थीं, साथ ही यह भी मालूम होता है कि इसमें पुस्तक का मूल रूप संभवतः सफरदजंग वाली प्रति से ही तैयार किया गया है, क्योंकि दोनों प्रतियों में पाठ भेद बहुत कम हैं। इस पुस्तक में ८ जंग (विभाग) हैं।' प्रत्येक जंग के अंतर्गत कुछ अंक भी १ पंडित शुक्ल ने ७ जंग लिखे हैं। पुस्तक में प्राठवां जंग भी है जो प्रारम्भ तो हो जाता है समाप्त नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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