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मत्स्य- प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
तथा शोल का परिचायक है
मैं सिष हों तुम चरन कीं, आठौं जाम अधीन । परू पाय परनाम करि, कवि पंडित परवीन || वरन-हीन कुल-हीन जाति आधीन लीन प्रति । उर विचार यों धारि अंक ये किए जोर वित ||
१०. पुस्तक का विभाजन 'प्रभाव' नाम से किया है । (२) सुजान चरित्र
सूदन कृत । सूदन भरतपुर के एक उत्कृष्ट कवि हैं । इनका लिखा यह ग्रंथ हिन्दी साहित्य में काफी प्रसिद्ध है । 'सुजान चरित्र' एक प्रबंध काव्य के रूप में है और इसमें संवत् १८०२ से १८१० तक की घटनाओं का वर्णन | यह ग्रंथ ऐतिहासिक महत्त्व रखता है । इसमें दिए गए संवत् और घटनाओं का अनुमोदन इतिहास द्वारा होता है। इस ग्रन्थ के संबंध में शुक्लजी ने कुछ आक्षेप किये हैं
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१. वस्तुनों की गिनती गिनाने की प्रवृत्ति बहुत है ।
२. भिन्न-भिन्न भाषाओं और बोलियों के साथ खिलवाड़ किया हैभाषा के साथ मनमानी की है ।
३. चरित्र-चित्रण में गांभीर्य नहीं है ।
उस समय का ध्यान रखते हुए इनमें से एक भी प्राक्षेप गंभीर नहीं है । वस्तुों की गिनती गिनाना उस समय की एक प्रथा थी जिसका तात्पर्य केवल विविधता से था । यदि घोड़ों की गिनती गिनाई है तो उसका यही अभिप्राय है कि युद्ध में विविध प्रकार के घोड़े थे। इसी प्रकार शस्त्रों तथा सैनिकों के बारे में भी कहा जा सकता है । साथ ही पंडित प्रवृत्ति तो चलती ही थी भाषा को अच्छी तरह देखने पर पता लगता है कि भाषा के साथ इतना खिलवाड़ नहीं है जितना प्राचार्य शुक्ल समझते हैं । मुसलमानों से खड़ी बोली का प्रयोग ना कोई बुरी बात नहीं है, और ग्रन्थों में भी यह बात मिलती है और उनकी बोली हिन्दुओं से बराबर भिन्न रही है - आज भी है । वर्णन को वास्तविकता प्रदान करने हेतु, विशेषतः युद्ध-वर्णनों को, शब्द की तोड़
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मथुरा निवासी चौबे । ये भी महाराज सूरजमलजी के प्राश्रित थे । कुछ लोग सोमनाथ और सूदन के माथुर चौबे तथा सूरजमल के आश्रित होने से इस बात की कल्पना करते हैं कि दोनों व्यक्ति एक थे ।
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