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________________ १-२ ___ अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास संबंधी ३. इस पुस्तक से उस समय की अनेक ऐतिहासिक घटनाओं की पुष्टि होती है। ४. भाषा और छंद की अनेक त्रुटियां हैं। इसका एक कारण लिपिकार की अज्ञता कही जा सकती है । ५. पुस्तक में प्रतापसिंह जी के जीवन से मरण तक का पूरा विवरण होने के कारण इसे वीर-काव्य के अतिरिक्त एक प्रबंध-काव्य भी कहा जा सकता है क्योंकि इसमें प्रतापसिंहजी के संघर्षमय जीवन का आद्योपान्त वर्णन है। ६. इस ग्रन्थ में केवल ४४।। पत्र हैं और काव्य-गुण स्थान-स्थान पर दिखाई देते हैं। ७. पुस्तक का नाम बहुत उपयुक्त है। यह उस समय की याद दिलाता है जब हिन्दी का वीरगाथाकाल था और जब हिन्दी में अनेक 'रासौ' लिखे गए थे। ८. हिंदी में 'वीर गाथा' कहे जाने वाले काल की लगभग संपूर्ण पुस्तकें संदिग्ध हैं, उनकी रचना कब हुई, किन कवियों ने की, कितनी सामग्री ऐतिहासिक है, कौनसे अंश प्रक्षिप्त हैं इन बातों का भी कोई ठीक पता नहीं चलता। कुछ लोग तो इन पुस्तकों में से अनेक को दो-तीन सौ वर्ष पहले की ही कृतियाँ बताते हैं। 'पृथ्वीराज रासो' नामक वीरकाव्य को प्राज तक भी कुछ निर्णय नहीं हो सका है- न कोई प्रामाणिक प्रति है, न कवि का निर्णय और न उसमें वरिणत घटनाओं की ऐतिहासिकता। इस दृष्टि से मत्स्य का वीर-काव्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण है (i) उनके रचयिता का पता है । (ii) सामग्री इतिहास से प्रमाणित होती है । (iii) एक ही कवि को लिखी पूरी पुस्तक है। (iv) प्रक्षिप्त अंश नहीं हैं। (v) भाषा से भी रचनाकाल की पुष्टि होती है। (vi) नाम, तिथियाँ, सेना की संख्या और युद्धों के वर्णन सभी इतिहास-संमत है। ६. कवि के जीवन से संबंध रखने वालो सामग्री बहुत कम मिलती है । अपनी 'अज्ञता' का वर्णन कवि ने अवश्य किया है जो कवि के प्रार्जव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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