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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन १८१ सूदन का 'सुजान चरित्र' तो प्रसिद्धि पा सका, किन्तु 'प्रतापरासो' का नाम अलवर में भी नहीं सुना जाता । मैंने जब इस वीर-काव्य का वर्णन अलवर के विद्वानों तथा ठिकानेदारों से किया तो उन्हें बड़ा आश्चर्य सा लगा कि इस प्रकार का कोई युद्ध-काव्य भी कभी लिखा गया था। इसमें संदेह नहीं कि सूदन की कविता के सामने जाचीक जीवन की कविता हल्की पड़ती है, किन्तु एक प्रामाणिक वीर-काव्य का इस तरह नितान्त लुप्त हो जाना निःसंदेह खेद की बात है। इस पुस्तक में वर्णित डीग के वृतान्त से भरतपुर राज्य के इतिहास पर भी बहुत प्रकाश पड़ता है क्योंकि कवि ने डीग की अनेक बातों का वर्णन बहुत विस्तार के साथ किया है । नजफखां के लिये लिखा है दिल्ली दल प्रामैरि दल, अरु दिखणी दल संग। ले चढिय बल नजन्व नर, गज वाजि सुचंग ॥ एक प्रभाव में प्रतापसिंहजी द्वारा अलवर ग्रहण करने का वृतान्त दिया गया है। लिखा है षत वंचत चलिए कटक, लिये वादि क्यौ राज । उतरे जा अलवर किले, मिल मंत्री बंधु समाज ।। इस पुस्तक में प्रतापसिंहजी के जीवन का पूरा विवरण मिलता है, यहां तक कि नायक का स्वर्गारोहण भी दिखाया गया है रावराज यो वचन कह, धर्यो चरन निज ध्यान । पहर प्रात वैकुठ घर, पातिल कियों पयांन ।। इसके उपरान्त बख्तावरसिंहजी का राजतिलक हुअा। यहां तक की कथा इस ग्रन्थ में दी गई है। इस संबंध में निम्नांकित बातें उल्लेखनीय हैं १. इस पुस्तक में सूदन की शैली का अनुगमन किया गया है। निश्चय ही सुजान चरित्र, प्रताप रासो से पहले लिखी गई पुस्तक है, और बहुत कुछ संभव है कि प्रतापरासोकार को सुजान चरित्र से कुछ प्रेरणा मिली हो । हो सकता है उस समय वीर-काव्यों को लिखने की यही प्रणाली हो । उस घोर शृंगारी युग में ऐसे काव्यों द्वारा ही वीर-काव्य का वांछनीय स्रोत प्रवाहित होता रहा। २. प्रताप रासो में प्रतापसिंह के लगभग सभी साहसिक कार्यों का वर्णन है जिनके आधार पर उनकी एक प्रामाणिक जीवनी तैयार हो सकती है। Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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