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________________ १८० अध्याय ५-नीति, युद्ध, इतिहास संबंधी मंत्री छाजूराम सो, बूझत बोले वैन । सुनि अवाज वृजराज ही प्राये पातिल लैन । राजा ने प्रतापसिंहजी को सिरोपाव दिया और नगर सु डहरा' नाम ठाम कहियत अति भारिय । महल बाग बाजार ताल तर सुगढ़ सुढारिय ।। प्रतापसिंहजी कुछ दिनों तक भरतपुर के राजा के यहां रहे, अंत में जवाहरसिंहजी से अनबन हो जाने के कारण ये भरतपुर छोड़ कर आमेर चले गये । वहां जयपुर-नरेश के साथ मावड़े के युद्ध में प्रतापसिंहजी ने अपने आश्रयदाता जवाहरसिंहजी का सामना किया। इस युद्ध में जवाहरसिंहजी की हार हुई । कवि के शब्दों में युद्ध का वर्णन देखिये उर उर सों नर सोंह उछारु । नर नर नेम लियो षग बारु ॥ मर मर माचि रही दल दोय । सर सर सेल पड़े झड़ होय ।। कर कर कायर रोम सुकंप । षर षर म र लई सिर चंपि ॥ छर छर होय छडाल सपार । जर जर जोय बहे षगधारि॥ रण रण रुचिर होइ रण जंग । तर तर तोंग बहंत अभंग ।। इसी प्रकार घर घर, फर फर, थक थक, पर पर आदि की आवत्ति के साथ युद्ध का वर्णन है । एक और वर्णन थके सूर सोही भरै छोरु छोहं । परै रुड मुंड गरकैस लोहं ।। वहै तेग वान कमाने वरंछी । वहै गोल गोला लगे तोव अछी ।। फूट कटै सीस होय टूक टूकं । गिरे लोथ लोथं परे षेत कूकं । डीग पर नजफखां द्वारा की गई चढ़ाई का वर्णन 'नजब' नाम से किया है। महाराव प्रतापसिंह के युद्ध, साहसिक कार्य, अाक्रमण आदि का विस्तृत विवरण दिया गया है । सूदन के सुजान चरित्र के सदृश ही इस पुस्तक का भी ऐतिहासिक महत्त्व है। इसमें दी गई बातों की पुष्टि अलवर तथा भरतपुर के इतिहास भी करते हैं । 'सुजान चरित्र' तथा 'प्रताप रासो' के वर्णनों को मिलाने से उस समय का एक प्रामाणिक तथा ऐतिहासिक चित्र उपलब्ध हो सकता है । ' यह डेहरा अलवर के डहरा से अलग है । भरतपुर का डेहरा डीग के पास है और अल वर का डहरा अलवर से पांच मील दूर । अलवर वाले डहरा में ही श्री स्वामी चरणदासजी का जन्म हुआ था और वहाँ अब तक भादों शुक्ला तीज को चरणदासजी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। यहाँ के वर्तमान महन्त का नाम पूर्णदासजी है । भरतपुर का डेहरा सामरिक महत्त्व लिए हुए था । अाज तक कहावत मशहूर है-'डहरे की डाइन'। २ 'तेग' का राजस्थानी प्रयोग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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