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मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन
१८५ हैं। प्रत्येक अंक के अंत में एक छंद है, जिसकी तीन पंक्तियां तो सब में एक सी हैं जो नीचे दी जा रही हैं, चौथी पंक्ति अंक विशेष के विषय से सम्बन्ध रखती है
भूपाल पालक भूमिपति वदनेस नंद सुजान है। जाने दिली दल दरिषनी कोने महा कलकान है।
ताको चरित्र करून सुदन कह्यो छंद बनाइ के ।' कवि की इस रचना से उसके बृहद् ज्ञान का पता लगता है। कविवर सूदन काव्य एवं सांसारिक ज्ञान दोनों में ही प्रतिभाशील थे। इनका शब्दकोष ग्राश्चर्यजनक है। जब वे शस्त्र, अनाज, मसाले, पेड़, फल, मिठाई, बर्तन, शाभूषण आदि गिनाने लगते हैं तो वस्तुओं की पूरी सूची समाप्त कर देते हैं,
और वह भी बड़े काव्यमय ढंग में । यह ठीक है कि इस प्रकार की वस्तुओं को गिनाने की प्रणाली उच्च काव्यत्व से नीचे की चीज है किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय वस्तुओं को गिनाने की प्रणाली पद्धति विशेष बन गई थी। और कवि समुदाय भी अपनी बहुज्ञता का प्रदर्शन काव्य-कला के अंतर्गत ही समझता था।
युद्ध का वर्णन बहुत ही उत्तम रीति से किया गया है। ध्वन्यात्मक शब्दों की श्रावृत्ति पुनः पुनः हुई है । एक अवतरण देखें---
धड़धद्धरं घडधद्धरं भड़भन्भरं भड़भन्भरं । तड़ततरं तड़तत्तरं कड़कक्करं कड़ककर ।। घड़घग्घरं घड़घग्घरं झड़झज्झरं झड़झज्झरं ।
अररर्ररं अररररं सररररं सररर्ररं ।। घनननननन, सनननननन आदि शब्दों की श्रावृत्तियां भी पाई जाती हैं। अस्त्रशस्त्रों, गोला-बंदकों के शब्द को शब्दों की ध्वनि द्वारा प्रदर्शित करने की चेष्टा की गई है। कवि ने युद्ध में भाग लेने वाले दोनों दलों के साथ न्याय किया है। अतिशयोक्ति द्वारा वर्णनों को काल्पनिक बनाने की चेष्टा नहीं की है। सेना
आदि की संख्या बताते समय बास्तविकता की ओर ध्यान दिया गया है। ऐसा मालूम होता है कि कवि को सेना संबंधी वास्तविक संख्याओं का पूरा पता रहता था। उसने निश्चय के साथ बताया है कि किसी युद्ध विशेष में कितने घुड़सवार थे, कितने पैदल, कितना तोपखाना आदि थे। साथ ही इस पुस्तक में जितने भी नाम आये हैं वे सब सच्चे हैं, निश्चय रूप से इन लोगों ने राजा के साथ युद्ध में भाग लिया था । सूदन के वर्णन में ऐतिहासिक महत्त्व का गौरव है
१. युद्धों की जो तिथियां दी गई हैं उन्हें इतिहास में दी गई तिथियों
१ इसके पश्चात् चौथी पंक्ति में वरिणत विषय का उल्लेख होता है।
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