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________________ अध्याय ५ नीति, युद्ध, इतिहास सम्बन्धी तथा अन्य मत्स्य प्रदेश में नोति संबंधी अनेक दोहों का प्रचलन रहा जिनका मौखिक रूप तो उपलब्ध होता है किन्तु यहां के साहित्य में कोई अच्छा संग्रह नहीं मिल सका। हां, हितोपदेश, नीतिशतक आदि के अनुवाद अवश्य मिले, और पाईने अकबरी के आधार पर लिखी कुछ राजनीति । इन नीति-पुस्तकों का प्रणयन राजपत्रों को पढ़ाने के लिये किया गया था। नीति-संबंधी कुछ कहानियां भी प्रचलित थीं जैसे विक्रमादित्य से संबंधित बत्तीस पुतलियों की बत्तीस कहानियां । सामान्य ज्ञान और नीति के लिए अकलनामे भी बनाये गए जिनमें सामान्य व्यावहारिक बातों का अच्छा वर्णन किया गया। इन अकलनामोंमें बहुत सी ऐसी बातें भी हैं जिनका जानना न केवल राजपुत्रों को ही वरन् सभ्य समाज में सभी को आवश्यक होता है । ___नीति के अतिरिक्त युद्ध-संबंधी साहित्य भी उपलब्ध हुअा है जो उस समय के राज्यों के उपयुक्त ही है । वह समय घोर संघर्ष का था। मुसलमान, मरहठे, जाट, अंग्रेज, मुगल आदि शक्तियां अपने-अपने उत्थान में लगी हुई थीं और अपनी स्थिति को दृढ़ बनाने की चेष्टा कर रही थीं। कभी-कभी दो या अधिक शक्तियों के गठबन्धन भी हो जाते थे। मत्स्य के अंतर्गत चारों राज्यों में कभीकभी आपसी लड़ाइयाँ भी हुआ करती थीं। उदाहरण के लिये प्रतापसिंह भरतपुर राज्य में जवाहरसिंहजी के आश्रित रह चुके थे परन्तु उन्हीं के राज्य से अलवर का दुर्ग प्रतापसिंहजी ने झपट लिया। और भी कई बार इस प्रकार के संघर्ष हुए। जाट राजाओं का मुसलमानों के साथ घनघोर युद्ध हुया और मुगल भी भरतपुर का लोहा मानते थे। दिल्ली में जाटों की धाक बैठ गई थी और उन्होंने मुगलों की इस राजधानी को खूब लूटा । एक समय तो जाटों के राज्य का विस्तार अत्यधिक हो गया था। प्रागरा, मथुरा, दिल्ली तथा प्रासपास का बहुत सा हिस्सा भरतपुर राज्य का अंग बन गया। करौली और धौलपुर के वर्तमान नव-निर्मित राज्य अंग्रेजों से दानस्वरूप प्राप्त हुये थे, यद्यपि इन राज्यों की परम्परा अलवर और भरतपुर से पुरानी है। भरतपुर और अलवर के राजाओं में युद्ध की दृष्टि से दो राजाओं के नाम बहुत प्रख्यात हैं। एक सुजानसिंह (सूरजमल) जिनकी वीरता का जो वर्णन 'सुजान चरित्र' में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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