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________________ १७० अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास सम्बन्धी किया गया है उसकी समानता का अन्य ग्रंथ प्राप्त करना हिन्दी में कठिन है । दूसरे अलवर के प्रतापसिंहजी जिनके यश और पराक्रम तथा माहसिक कार्यों का वर्णन करते हुये जाचीक जीवण ने 'प्रतापरासो'' नाम से एक पुस्तक लिखी। इनके अतिरिक्त मत्स्य के राज्यों में समय-समय पर छोटे-बड़े बखेड़े भी हो जाया करते थे। भरतपुर में सिनसिनी पर लडाई हुई थी, और अलवर के एक राजा ने भी एक बार अपने सभी सरदारों से जागीरें छीनने का निश्चय किया था। उस समय की एक रचना 'यमन विध्वंस प्रकास' है। भरतपुर राज्य से संबंधित वीर-साहित्य प्रचुर मात्रा में मिलता है। यहां की वीरता का क्रम बहुत समय तक चला। सुजानसिंह और जवाहरसिंह की वीरता भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। एक छोटे से राज्य का अधिपति दिल्ली के सलतोन को भयभीत कर दे और मनमानी लट मचा कर सम्पर्ण दिल्ली में अपना अातंक जमा दे, इससे अधिक वीरता का और क्या प्रमाण हो सकता है ? कहने को भरतपुर के इन जाट राजाओं को कुछ लोग डाकू कहते हैं और इनके पूर्वपुरुष चूरामण को तो डाकुओं के सरदार से कुछ भी अधिक नहीं कहा गया है। शिवाजी को भी लोग पहाड़ी चूहा कहते थे किन्तु उनकी वीरता का साक्षी भारतीय इतिहास है। इन डाकू कहे जाने वाले जाट राजाओं ने भी मुल्क जीतने के पश्चात् राज्य-शासन संभाला, बिखरी हुई शक्ति को संगठित किया; महल, मंदिर, तालाब और किल बनवाये तथा कवि और विद्वानों का सत्कार किया । सूरजमल को ही लीजिए । डीग के भवन स्थापत्य-कला के सुंदर नमूने हैं। इनमें मुगल कला का प्राधान्य है। गोपाल-भवन बहुत ही सुंदर है । और यहां के फव्वारे तो देखते ही बनते हैं। कोई समय था जब, कहा जाता है, रंगीन फव्वारे चलते थे। मैसूर के वृन्दावन उद्यान में चालित रंगीन फव्वारे तो विद्युत् प्रकाश का परिणाम हैं, किन्तु यहां डीग में रंगीन पानी की ही व्यवस्था की जाती थी। थोड़ी मात्रा में मामूली पानी के फव्वारे आज भी चलते हुए देखे जा सकते हैं । डीग के भवनों का शिलान्यास, डीग और भरतपुर के किलों का निर्माण, गोवर्द्धन को उसका वर्तमान वैभव प्रदान करना, उदय राम, शिवराम और अखैराम जैसे काव्य-मर्मज्ञों का सत्कार करना, दिल्लो पर सफल पाक्रमण करना आदि किसी भी प्रतिभाशील राजा के लिये गौरव की बात हैं। १ प्रताप रासो एक उत्तम काव्य ग्रंथ है जिसका ऐतिहासिक एवं साहित्यिक महत्व अत्यन्त मूल्यवान है । प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर द्वारा इस पुस्तक को प्रकाशित करने का प्रयत्न हो रहा है। पुस्तक 'अलवर म्यूजियम' में मिली थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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