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________________ मत्स्य-प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन राम तजूं पै गुरु न बिसारू। गुरु के सम हरि कू न निहारू ।। हरि ने जन्म दियौ जग माही। गुरु ने आवागमन छुटाही ॥ चरनदास पर तन मन वारू । गुरु न तजं हरि को तजि डारू । २. ब्रह्म निर्गुण सगुण एक प्रभु, देख्यौ समझ विचारि । सतगुरु ने आँखी दई, निस्चै कियौ निहारि ॥ ३. काया नगर बाबा काया नगर बसावौ। ज्ञान दृष्टि सूं घर में देखी सुरति निरति ली लावो । पांच मारि मन बस कर अपने तीनों ताप नसावों ।। ४. साथ हो सगुण भी मेरे इक सिर गोपाल और नहीं कोऊ भाई । ................... जाति हु की कान तजी लोक हू की लाज भजी । दोनों कुल माहिं की कहा कर सोई ।। ['मेरे तो गिरधर गोपाल' के अनुसार] दयाबाई ने भी इसी प्रकार की कविता की। गुरु को महिमा इन्होंने भो बहुत गाई है गुरु बिनु ज्ञान ध्यान नहिं होवे । गुरु बिनु चौरासी मन जोवै ॥ गुरु बिनु रामभक्ति नहिं जागै । गुरु बिनु असुभ कर्म नहिं त्याग ॥ साधु वर्णन साध साध सब कोउ कहै, दुरलभ साधू सेव । जब संगत ह्व साध की, तब पावै सब भेव ॥ प्रात्म ज्ञान ज्ञान रूप को भयो प्रकास । भयो अविद्या तम को नास ।। दयाबाई का जन्म भी डहरा' में ही हुप्रा । 'दयाबोध' को रचना १८१८ की बताई जाती है । इनके द्वारा कोमलता, मधुरता, प्रेम आदि की प्रशंसा को गई है। १ डहरा - अलवर जिले में एक गांव जो अलवर के राजमहल 'विजय पैलेस' से लगभग एक मील की दूरी पर है । यहां चरनदासजी का आश्रम है, और एक महंत उसके अधिकारी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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