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________________ १४६ अध्याय ४ भक्ति काव्य - इसके उपरान्त - सुर पूजा निज निज पाई । फिर ग्रांचर गांठ जुराई ॥ वृषभान राधिका पान लेह वर कन्यादान कराये । सब नेगी नेग चुकाये ॥ दुज दान गुसाई पाये । दुलहा दुलहनी समेत चले जनमासे कृष्ण लिवाये ॥ इस वर्णन में निम्न पंक्ति 'टेक' के रूप में मिलती है Jain Education International 'वर समै जान वृखभान धाम ब्रह्मादि देव सब प्राये ।' जनमासे में जायकें कियो वोहोत से दान । अब बढ़ार बरनन करू ताय सुनौ दे कान ॥ पत्तल बांधने और खोलने की क्रिया पूर्ण रूप से दिखाई गई है और साथ ही बढ़ार का पूरा वर्णन किया गया है । पत्तल खोलने का थोड़ा सा नमूना देखिये और देखिये कि किस प्रकार गोपियां बांधी जा रही हैं छूटी तरकारी पारि भारी और सुहारी भात धनी । बांधों प्रत प्यारी मांग तुम्हारी बैनी कारी जात बनी ।। छूटे दग दोने सेब सलोने नौन अलोने भोग बने । बंधी भोवां के पलकन बांके बिन सर सांके काम सने । छूटे जो दाने व्रत के साने और मखाने खांड गरे । बंध सब गोती श्री नथ मोती सुंदर ज्योती नैन खरे ॥ बांधो जु हुलासी हंसो ग्यासो मेदकोरि मतवारी को । पुन बांध सुपारां रूपां तारां रुनको लक्ष्मी नारी की ॥ अब जैनों भाई कहै गुसाई सबै लुगाई बांध दई । यह वर्णन इस प्रदेश की प्रचलित प्रणाली के अनुसार सभी विस्तारों सहित मिलता है । ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी बरात में जाने का सम्पूर्ण दृश्य सामने आ गया हो । वर और वधू गोकुल पहुँचते हैं और यशोदा उनको लिवाती है अर्थात् गृह प्रवेश कराती है । इसके पश्चात् की कथा भी है और लिखा है कि एक बार नंद और यशोदा कुरुक्षेत्र गये जहां से वे वसुदेव और देवकी को अपने साथ लिवा कर ब्रज लाये । कथा को चित्रित करने में कवि ने अपनी कल्पना से सभी कमियों को पूरा कर दिया है। कहानी में अनेक बातों के विस्तृत विवरण है और कवि ने सरस प्रणाली में प्रबंध काव्य का निर्वाह किया है । मत्स्य में शिवजी की भक्ति और पूजा अब भी यथेष्ठ मात्रा में होती है । शिव चतुर्दशी की रात्रि को प्राज भी स्थान-स्थान पर जागरण किया जाता है For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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