SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन और जोगी लोग बड़े उत्साह और प्रेम के साथ 'व्योहुलौ' गाते हैं। पार्वती के कन्यादान के अवसर पर भक्तलोग कन्यादान के रूप में दक्षिणा चढ़ाते हैं। हमारे प्रसिद्ध कवि सोमनाथ ने भी 'महादेवजी की व्याहुलौ' नाम से एक पुस्तक लिखी है जिसमें ११८ पत्र हैं तथा ५ उल्लास हैं। इस पुस्तक की और 'ध्रुव विनोद'' को शैलो एक-सी है। कवि को ५ उल्लास या ५ सर्गों से कुछ विशेष प्रेम प्रतीत होता है क्योंकि उनको अनेक पुस्तकों में यह संख्या ५ ही मिलती है । इस पुस्तक को कविता कवि की कला के उपयुक्त हो है । 'महादेवजी को व्याह लौ' संवत् १८१३ में लिखा गया संवत ठारैसे बरस, तेरह पौष सुमास । कृष्ण सुदुतिया बुद्ध दिन, भयौ ग्रंथ परगास ।। कथा का प्रारम्भ हिमालय को पुत्रो पार्वतो के वर्णन के साथ होता है है मैंना नाम भांवनी, ताकें सुत मेंनाक कहायो । अरु हेम रंग उपजी है कन्या, छबि को बरनि बनायो ।। पार्वती के रूप का वर्णन मर्यादा के अन्तर्गत किया गया है और कहीं भी पूज्य भाव को ठेस नहीं लगने दी है, साथ ही अलंकारों का सुन्दर प्रयोग किया गया है । उत्प्रेक्षा देखिए पुनि भरी मांग मुकतनि सों सुन्दर भरि सिंदूर ललाई । मनु उडगन पांति गगन में राजें संजुत सोम सवाई ।। पुनि मृदु कपोल के निकट लायके कुटिल अलक छटकाई । मनु इंदीवर मकरंद पान को सुख अंबुज ढिंग आई ।। पहले उल्लास में पार्वती के जन्म का वर्णन है और दूसरे में 'भवानी शंकरसम्बन्ध वर्नन' है। प्रकृति-वर्णन का एक नमूना देखिए बहु शृंगें जाकी मुकट प्रभा की सरद छटा की दुति जीतें। शीतल जलवारे श्रवत अपारे झिरना भारे लहरी ते ।। द्रुम पुंजनि बेली जिती सुहेली पुहपनि मेली थिर श्रहरै। मकरंद बटोरें पवन झकोरे जंह चंहु अोरें मृदु फहरें ।। फहरें सु प्रभंजन गरमी गंजन षग दुषभंजन धुनि बोलें । अरु शृंगनिरूरा नचत मयूरा तषिनि हजूरा मन षोलें। बहु विधि के चहरें मृग छवि छहरें प्रानद लहरें लाह हिये। तपसी तिहि कंदर बसि के अंदर बन फल सुंदर षाइ जियें ।। १. विवरण अन्यत्र देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jainei
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy