________________
मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
१४५ यह कवि महोदय महाराज जसवन्तसिंह के आश्रित थे ।' पुस्तक में सरस्वती प्रार्थना, गणेश प्रार्थना, गुरु प्रार्थना के उपरान्त भूमिका दो गई है। कृष्णावतार के कारण भी बताए गए हैं और गोकुल को लोलाओं का वर्णन है । साथ ही पूतना आदि के वर्णन यथास्थान दिये गये हैं। राक्षसों के हनन की कथा भी है। राधाकृष्ण के मिलन को तैयारी का एक चित्र देखिये
आये आज स्याम बरसाने राधे यह सुधि पाई। देवन चली सजे पट भूषण अष्ट सखी बुलवाई ।। चन्द्रावली चन्द्रभागा चन्द्रानन चतुर चमेली । चन्द्रकला चंपा चिराक सम ललित विसाखा हेली।। ए निज सखी और बहुतेरी तिनके मध्य प्रिया जी। चलीं वदन सोभा विलोक त्रिय लोक ऊपमा लाजी ।। कहे गुसाई रामनारायण यह प्रभु अकथ कहानी।
सादर सुनहि परम सुख पावें होय परम सुज्ञानी ।। अब राधा और कृष्ण के विवाह का भी वर्णन देखिये जो ब्रज में प्रचलित पद्धति के अनुसार बरसाने में वृषभानुजी के यहाँ सम्पादित कराया गया है। शादी, बढ़ार आदि सारी बातों का वर्णन कवि ने अपनी कल्पना के आधार पर किया है
१व्रज निकट भरतपुर नाम जासु को नृप जसवंत कहाये ।
गढ वन समान असंक किलो अरि देस नरेस डराये।। पुस्तक निर्माण का समय भी है---
अब एसु विचारो सुन रीत अंक जिमि धारीअयतीस बहुरि उन्नीस वामगति जोति सहेत प्रमानों। (१९३३) यह है प्रमाण श्रुति सार अलौकिक जो सुजान जन जानें ॥ सित पक्ष ज्येष्ठ की मास पंचमी प्रति पुनीत तिथि जानों। रविवार पुख्य नक्षत्र योग वज्र कौलव करण बखानों । और अपने संबंध में लिखा है
हों राधाकुण्ड निवासी।
भी फेर भरतपुर वासी॥ और अन्त में दिया हुअा है - "इति श्री राधिकामंगल गुसाई रामनारायण विरीचते समाप्तम् । शुभम्भूयात् । श्रीरस्तु कल्याणमस्तु । अथ शुभ संवत् १९३३ साके १७६८ भाद्रपद मासे शुक्ल पक्षे १३ भुगु वासरे लिखितं पं० नंदकिशोर लिखायतं श्री रामनारायण गुसाई ॥ शुभम् ।।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org