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________________ १२६ अध्याय ४-भक्ति-काव्य और इस विभाग को धर्मार्थ विभाग, सदावर्त, पुन्य विभाग, अथवा अन्य ऐसे ही नामों से अभिहित किया जाता था। इस विभाग द्वारा जहां असहायों को सहायता होती थी वहां मन्दिरों के लिए भी निश्चित रूप में सहायता दी जाती थी। अनेक स्थानों पर बराबर पाठ होता रहता था । नियमित पाठ करने वाले ये 'वर्णी वाले' राज्य और राजा की मंगल कामना के हेतु पाठ करते रहते थे। प्रत्येक राज्य के पंडे, दानाध्यक्ष आदि होते हैं। तीर्थ-स्थानों में दरबार की ओर से कुछ द्रव्य सहायतार्थ भेजा जाता है। पूजन आदि का कार्य नियमित रूप से अब भी होता है। प्रत्येक उत्सव के समय पुरोहित द्वारा सम्पूर्ण कार्य सम्पन्न कराया जाता है। स्वस्ति-वाचन के बिना कोई कार्य पूरा नहीं समझा जाता । यदि किसी कारण से राजा अनुपस्थित हो तो पूजन-कार्य दानाध्यक्ष द्वारा करा दिया जाता है। महन्त, पुजारी आदि के प्रति राजानों को श्रद्धा बराबर रहती है। आज सारी बातें बदल रही हैं। न राज्य रहे न राजा, और न धार्मिक कार्यों में इतना उत्साह । उस समय की अवस्था को देखते हुए ये स्वाभाविक ही था कि सगण भक्ति संबंधी काव्य की रचना हो। मत्स्य प्रदेश में भी इसी परम्परा का अनुगमन हुअा।' सर्व प्रथम हम राम काव्य को लेते हैं। रीतिकारों में उदय राम का नाम आ चूका है। भगवान राम के चरित्र से सम्बन्धित इनके बनाये तोन नाटक हमें मिले हैं जिनमें से दो को तो स्पष्ट रूप से 'नाटक' लिखा है और तीसरे को 'कथा'। हनुमान नाटक की कुछ पंक्तियां पवन पुत्र कु बोलि बोलि मुद्रिका गहाई। जनकसुता के हाथ जाइ दीजो यह भाई ।। सीता की सुधि लैन कू चले महा बलवान । पाइ रजाइस राम की हरषत है हनुमान । रजा यह राम की॥ १ मत्स्य के कवियों में महन्त, पुजारी, पंडे, चौबे, दानाध्यक्ष, राजपुरोहित आदि सम्मिलित हैं । , इनके बनाये हुए २४ ग्रन्थ बताये जाते हैं, जैसे-सुजान संवत, गिरवर विलास, हनुमान नाटक, रामकरुण नाटक, अहिरावण वध कथा, कृष्ण प्रतीत परीक्षा, राधा प्रतीत, संकेत समागम, यक्षपचीसी, बारहमासी । ये कविवर महाराज रणजीतसिंह के समय में थे. जिनका राज्य-काल सं० १८३४ से १८६२ विक्रमी रहा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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