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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
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महावीर बलमान तीर सागर की प्रायो। किलकिलाय गल गजि तर्ज गिरि गगन उड़ायौ । पायक श्री रघुवीर को बलधायक बल अंग। लवा लंक झपटन चले बली बाज बजरंग ।।
रजा यह राम की । सीता विरह विसाल हाल हनुमान सुनायो । है प्राय द्रग लाल सनत जनपाल रिसायो ।। कूटंब सहित दसकंठ कौं अब संघारौं जाय । लैहु जानकी जाय अब बोले राम रिसाय ।
रजा यह राम की॥ धनि धनि तु हनुमान कठिन कारज करि प्रायो। महावीर बलवान कियौ सबको मन भायौ ।। यह नाटिक हनुमान को कहै सुनै नर कोय । ग्यान ध्यान बहु ऊकति उदै उर प्रेम बुद्धि बहु होय ।।
रजा यह राम की। रामकरुण नाटक से कुछ पंक्तियां
यहां राम अकुलाय रैन रहि गई कछु थोरी। ज्यों जल निघटे मीन दीन विधु विना चकोरी ।। कटे पंष पंषेस वामनि विनु फनि अकुलाई । हेरि हेरि हनुमान मग राम रहे अकुलाय ।।
राम करुणा करें। सुनहुं सषा सुग्रीव समुझि संदेह न यामें । वानर देहु पठाय बीनि बन चंदन लामें । रचौं चिता अब प्राय सब सापर बैठों जाय । लै लछिमन कौं गोद में दोजौ अगिन जराय ।।
राम करुणा करें। उदय भयौ इत भोर सहित सरवरी सिरांनी । झलकी किरणि कलिंद जगे जब सारंगपानी। नित्य क्रिया कर कुमर दोऊ पाये आसन पास । कटि निषंग कर सर धनुष बैठे कुंवर हुलास ।।
राम करुणा करें। ___ इसी प्रकार 'अहिरावण वध कथा' है । इसे 'कथा' कहा गया है, नाटक नहीं। उपयुक्त दोनों अवतरणों को देखने पर यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि कवि ने इन दोनों को 'नाटक' किन कारणों से कहा है, यद्यपि इसमें संदेह नहीं कि कवि इन्हें
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