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________________ ३. निर्गुण ज्ञानाश्रयी - हिन्दी में संत-साहित्य अपना पृथक् ही स्थान रखता है । इस साहित्य में सतगुरु, सबद, बानी, अनहद नाद, नाड़ियां, योग आदि के प्रकरण होते हैं। साथ ही हिन्दू-मुस्लिम के भेदभाव को हटाने की भी चेष्टा होती है । मत्स्य में निर्मित चरनदासी साहित्य कुछ इसी प्रकार का है । किन्तु इन सब का प्रतिपादन करने पर भी चरनदासजी अवतारवाद में विश्वास रखते हैं और इसी का प्रतिपादन उनकी शिष्या दयाबाई तथा सहजोबाई आदि ने किया । हां 'रामजन' नाम के एक संत की पुस्तक में संत मत का पूरा अनुगमन किया गया है। नाम से ऐसा प्रतीत होता है। कि ये महात्मा ग्रस्पृश्य रहे हों; आज के प्रचलित 'हरिजन' से 'रामजन' का काफी साम्य बैठता है । मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन १२५ ७. ग्रन्य धार्मिक ग्रन्थ - रामायण, महाभारत आदि के अनुवाद | ४. निर्गुण प्रेम मार्गी - एक पुस्तक 'प्रेमरसाल' कही जाती है, जिसके रचयिता गुलाम मुहम्मद' हैं । दुर्भाग्यवश यह पुस्तक प्राप्त नहीं हो सकी। किन्तु गुलाममुहम्मद महाराज रणजीतसिंहजी के समकालीन थे और कई लोगों से इनकी मौखिक चर्चा सुनी गई। इस प्रकार हम देखते हैं कि मत्स्य में भक्ति सम्बन्धी विविध धाराम्रों पर रचनाएँ की गईं, फिर भी यह मानना पड़ेगा कि प्राधिक्य सगुण भक्ति का ही रहा । और उसमें भी कृष्ण सम्बन्धी रचनाएँ अधिक प्राप्त होती हैं । इसका कारण कृष्ण की लीला भूमि मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, महावन, गोकुल, दाऊजी आदि स्थानों का इस प्रदेश के निकट होना है । राज्य की ओर से धार्मिक कार्यों की ओर काफी ध्यान दिया जाता था । प्रत्येक राज्य में निश्चित रूप से कुछ धनराशि धर्मार्थ सुरक्षित रखी जाती थी ។ गुलाम मुहम्मद महाराज रणजीतसिंह के समकालीन थे, जिनका राज्य काल सं० १८३४ से ६२ विक्रमी है। इस पुस्तक की वही शैली थी जो प्रेममार्गी सूफियों की रही। इनके पिता का नाम अब्दाल खां था । पुस्तक में प्रस्तावना के रूप में भरतपुर नगर तथा दुर्ग का सुन्दर वर्णन लिखा कहा जाता है । वास्तव में यह ग्रन्थ बहुत महत्वपूर्ण होना चाहिये क्योंकि इसको पा कर मत्स्य में भक्ति की चारों धाराओं का सुन्दर सम्मिलन हो जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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