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________________ १०८ अध्याय ३ --शृंगार-काव्य लक्ष्मण और उर्मिला संबंधी कुछ और पदअथ षसषाने के पद राग सारंग ताल धीमो तितालौ महल सरद दोउ मिलि बैठे षस के परदा लगाये री आली । लक्ष्मण छैल उमिला रानी सरजू तीर लुभ्यायैरी पाली ॥ मदनवान और फूल मोगरा पुसप गुलाब लगायेयेरी आली। चतुर सषी फूलन की सिज्या प्रोढत हैं सुख छायेरी पाली ॥ लोकगीत के रूप में एक और-लक्ष्मण के प्रति दसरथ राजकुमार सावरण लूम्यौं छै जी राज। थे कित लूमे राजदुलारे नाहिं और ते काज ॥ धन जोवन के हो मतवारे हमैं प्रीति की लाज । चतुर पीव तुम ही निरमोही हमतै नाहिन काज ।। 'पद मंगलाचरण बसंत होरी' ग्रंथ, पत्र संख्या २२८ के उपरान्त भी, अधूरा है, पता नहीं इस ग्रन्थ-रत्न में और क्या-क्या लालित्य था। राम, लक्ष्मण और अंजनिकुंवर से संबंधित एक विचित्र चित्र प्रदान करना इस पुस्तक की विशेषता है। राधा और कृष्ण सम्बन्धी पद भी इस पुस्तक में हैं किन्तु बहुत कम, और अधिक होते भी तो कोई विशेष बात नहीं थी क्योंकि राधा-कृष्ण का शृगार तो उस समय की सर्वत्र प्रचलित पद्धति थी। लक्ष्मणजी का नाम नीचे लिखे कई कारणों से विशेष उल्लेखनीय है १. भरतपुर के महाराज वेंकटेश लक्ष्मणजी के शिष्य थे। २. भरतपुर में लक्ष्मणजी के दो मंदिर हैं: एक पुराना-श्री वेंकटेश लक्ष्मणजी का, और दूसरा-नया बाजार वाले लक्ष्मणजी का। साधारणरूप से लक्ष्मणजी के मंदिर कम ही दिखाई देते हैं। ३. भरतपुर राज्य की पताका पर लिखा रहता है-- _ 'श्री लक्ष्मणजी सहाय' इस पुस्तक में खड़ी बोली के भी पद हैं मोहि नाहक क्यों दे गाली। स्यावासि स्याम मोहि गाली दे तू ताली देहै क्या यह हालि निकाली। चटक मटकै षटकै अतिही हटके घूघटवाली। चतुर कान तोसो जीते तोसी लाज सकुच सब डाली ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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