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________________ १०७ मत्स्य देश की हिन्दी साहित्य को देन जनकिसुता को रूप निरषि के आनंद भरि झकझोरि। चतुर सखी महाराज रिझावै बूका उड़ति भरि कोरि॥ अब 'लछमन छैल' देखिए'--- लछमन छैल फाग के माते झूलत रंग हिडोरै प्यारौ। सरदचंद मैं कनकलता मिलि मुनि जति के चित चोरौं । रंग के से भीने झुकि झुकि भै झोटन में झकझोर प्यारी। चतुर सखी आनंद रंग भरि के राजिंद पं त्रन तोरें । लक्ष्मण को ऐसे रूप में देखना हिन्दी साहित्य में एक बिलक्षण बात है। साकेत में श्री मैथिलीशरण द्वारा चित्रित लक्ष्मणजी चतुर के लछमन छैल से पीछे ही पड़ जाते हैं। एक बात और है । गुप्तजी के लक्ष्मण अाधुनिकता लिए हुए हैं और बातों का जमा खर्च बड़े करीने से करते हैं। उनकी पत्नी उर्मिला भी इस अाधुनिकता में किसी भी प्रकार अपने पति से कम नहीं है। चतुरजी के लक्ष्मण और उर्मिला अपेक्षाकृत प्राचीनता लिए हुए हैं लेकिन केलि-क्रीडा में थोड़े आगे बढ़े हुए हैं। झूले का प्रसंग अभी-अभी देखा ही है। उन दिनों लक्ष्मणजी को एक भक्त और त्यागी राजकुमार के रूप में चित्रित किया जाता था, होरी और शृगार से उनका क्या सरोकार, लेकिन चतुरजी ने अपनी होली के 'हुरंगे' में उनको भी ले लिया है। वे ही नहीं, इस 'हुड़दंग' से परम तपस्वी भगवान शंकर भी नहीं बचने पाये । ये देखिए शंकरजी भी होली खेल रहे हैं शंकर खेलत होरी । संग गिरिराज किशोरी। जटा जूटि सिर उपर कसिकै मुंडमाल दह तोरी । डमरु त्रिसूल डार दोऊ करत लै पिचकारि संजोरी ।। अबिर भरलई निज झोरी में शंकर खेलत होरी। वैसे लक्ष्मण के प्रति उनका भक्ति और श्रद्धा से युक्त पूज्य भाव है । 'भजो मन लक्ष्मण राजकुमार'-इसका एक अच्छा उदाहरण है। बहुत से अन्य स्थानों पर भी कवि ने इसी प्रकार लिखा है सुष की अवधि अवधि कौं वसिवौ । सियवर लषन भरथ रिपुहन कौं नितही दरस दरसिवी। सरजू तट निकुंज कुंजनि को विमल विलास विलसिवी ॥३ १ छल के रूप में लक्ष्मण का स्वरूप विशेष रूप से द्रष्टव्य है। लक्ष्मणजी की ऐसी झांकी बहुत ही कम मिलती है । २ सरदचंद लक्ष्मण और कनकलता उमिला। झूले पर दोनों के मिलकर झूलने का दृश्य और झकझोरी देखने योग्य हैं। ३ कवि हमें एकदम अयोध्यापुरी ले जाता है, जहां सरयू प्रवाहित हो रही है। ब्रज में इस प्रकार की भावना पार दृश्य-चित्रण अपना विशेष महत्व रखते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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