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________________ १०४ अध्याय ३ - शृगार - काव्य २. पुस्तक में व्रजभाषा के निखरे रूप का दर्शन होता है । ३. संपूर्ण वर्णन में शृंगार रस का प्रतिपादन बहुत ही संयत तथा पूज्य भाव से किया गया है। ४. शृंगार के सभी उपकरण नायक, नायिका, नखसिख, क्रीडा, केलि, सखा, सखी, व्यंग्य वचन आदि सुसंगत रूप में विद्यमान हैं। ५. संभव है किसी अच्छे कवि ने प्रचार की दृष्टि से यह पुस्तक राजा के नाम से चला दी हो क्योंकि इतनी सुंदर कविता का, साधारणतया, राजाओं की रचना में मिलना संभव नहीं होता फिर भी इतना अवश्य मानना पड़ेगा कि यह सब बातें राजा की आज्ञा से ही हुई होंगी, क्योंकि यह तथा अन्य पुस्तकें राज कीय पुस्तकालय में ही बहुत दिनों तक रही थीं। बख्तावरसिंहजी के पौत्र शिवदानसिंहजी' के शिक्षणार्थ एक पुस्तक 'शिवदानचन्द्रिका लिखी गई, जिसके रचयिता कवि मान थे । पुस्तक के उद्देश्य का वर्णन करते हुए कवि ने बताया कि शिवदानसिंहजी को काव्य-ज्ञान कराना ही इस पुस्तक का उद्देश्य था । पुस्तक की भाषा सरल और निखरी हुई है उदित भान परताप प्रगट कूरम कुल मंडन। कीने अरि गण लुप्त तिमिर दुर्गन दल पंडन ॥ ___ इस पुस्तक में बरवा छंद के माध्यम से कुछ बहुत ही सुन्दर प्रसंग हैं। नायिका की शान देखिए अंग अचल मुष बचना अनसिक नैन , प्रतरी की गति भीनी कीनी मैन । अंचल चष अनियारे चंचल चाल , कंजन भंजन खंजन गंजन बाल । १ शिवदानसिंहजी का शासन काल संवत् १९१४ से १९३१ तक रहा। २ इस पुस्तक की रचना कवि मान ने की थी। "इति श्री मन्महाराज कंवार श्री शिवदान सिंहजी हित कवि मान रचित शिवदान चन्द्रिका नाम ग्रंथ समाप्त।" ३ पुस्तक की समाप्ति का समय संबत नभ° शशि निधि मही१ फागुन शुभ सुपक्ष । दतिया बासर भूमिस्त ग्रंथ भयो परतक्ष । लिखने का प्रारंभ-- संमत विधु विधु नभ' निधी बहुरि गनपति' दंत । चैत बुधासित अष्टमी लिषी "मान" सुनिसंत ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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