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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
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राधे मोहन दोऊ साज सुकीन मुकट बेनु चुनरिया केलि नवीन । १
बरवै छंद में मान द्वारा की गई यह रचना बहुत ही सुन्दर बन पड़ी है । यद्यपि बरवा छंद अवधी भाषा में प्रस्फुटित गौर विकसित होता है, किन्तु कवि मान ने वह् चमत्कार ब्रज भाषा में कर दिखाया |
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भरतपुर की खोज में कुछ रचनाएं 'चतुर' के नाम से मिलती हैं । चतुर शब्द का प्रयोग अनेक शब्दों के साथ हुआ है, जैसे चतुर मान, चतुर मोहन, चतुर नंद, चतुर पीव, चतुर सखी, चतुर सूर, चतुर छैल, चतुर रसिक आदि । कुछ लोगों का अनुमान है कि महाराज बलदेवसिंहजी स्वयं ही इस नाम से कविता किया करते थे । कहीं-कहीं 'चतुर प्रिया' शब्द भी आता है और कहा जाता है कि इस नाम से महाराज बलदेवसिंहजी की रानी अमृतकौर कविता किया करती थीं। इसमें कोई भी संदेह नहीं कि रानी अमृतकौर काव्य में अभिरुचि रखती थीं, और कई ग्रन्थ इनको समर्पित किए गए थे ।
चतुर द्वारा लिखित 'तिलोचन लोला' में श्रृंगार संबंधी कई सुन्दर प्रसंग आते हैं।
अपने अनुसंधान में हमें इस पुस्तक की दो प्रतियां मिलों, एक में ४८ पत्र हैं और दूसरे में ८७ | दूसरी प्रति में कुछ अन्य बातें भी संगृहीत हैं । दोनों प्रतियां किसी एक ही लिपिकार की लिखी प्रतीत होती हैं । इन दोनों प्रतियों को देखने से प्रतीत होता है कि चतुर ने अनेक स्थानों से संग्रह किया और अपनी कविता भी लिखी । तिलोचन लीला में कोई विशेष श्रृंगारी प्रसंग तो नहीं है फिर भी शृंगार रस के छींटे प्रवश्य ही हैं ।
चतुर ने 'पद मंगलाचरन बसंत होरी' नाम की शृंगार रस से पूर्ण एक अन्य पुस्तक लिखो है ।
यह पुस्तक भरतपुर राज्य के इष्टदेव श्री लक्ष्मणजी से सम्बन्धित
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'नायका की स्वाभाविक एवं सरल श्राकृति से संबंधित ये बरवं बहुत उत्तम हैं ।
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