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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन तहां पायौ देवी सुकवि दैन असीस उदार , रतनपाल भैया कीयौ तासों प्यार अपार । एक दिना असे कह्यौ साहिब सहेत सनेह , हम कौं पूरन प्रेम को रतनागर करि देह । और फिर इस ग्रंथ की रचना हुई।' इस पुस्तक में ५ तरंगें हैं-- १. प्रथम तरंग-कवि, रतनपाल, पुस्तक-प्रयोजन २. द्वितीय तरंग--"प्रेम कौ निरूप" । प्रेम के अनेक स्वरूपों का वर्णन किया गया है। ३. तृतीय तरंग–अनेक उदाहरण दिये गये हैं, चकोर, मीन, हंस, __ आदि के प्रेम को चित्रित किया गया है । ४. चतुर्थ तरंग-अन्य उदाहरण । ५. पंचम तरंग-इस तरंग में मी बहुत से उदाहरण दिए गए हैं । शृंगार की अपेक्षा इसे 'प्रेम काव्य' कहना अधिक संगत होगा। इसमें स्त्रो और पुरुष का काम विषयक प्रेम नहीं वरन् प्रेम के सच्चे स्वरूप का वर्णन है प्रेम के न जाति पांति प्रेम के न रात दिन प्रेम के न जंत्र तंत्र प्रेम को न नेम है , प्रेम के न रंग रूप प्रेम के न रंक भप प्रेम के तो एक रूप लौह अरु हेम है । प्रेम के न सख दक्ष और प्रेम के न हान लाभ प्रेम के न जीव तातें तीनू काल छम है, देवीदास ने देषीयौ विचारि चारों जुग मांझ असो यह पूरन प्रकास नाम प्रेम है ॥ ' रतनपाल भैया कवियों के बड़े प्रेमी थे। कहा गया है-- श्री भैया रतनेस जू जबहि लेइ धन हाथ, अरि कविकुल-दारिद दोउ भजत येक ही साथ । रतनपाल भैया करौली नरेश धर्मपाल के पुत्र थे "धर्मपाल सागर तें उपजी" २ देवीदास आगरा नगर में ताजगंज के रहने वाले थे। आश्रयदाता की खोज में करौली जा निकले, क्योंकि उन्होंने सुना था--- रजधानी जदुपतनि की नगर करौरी राजु , __ तहां पंडित अरु कविन कौं राजत सकल समाजु । फिर तो करौली के राजकुमार रतनपाल ने इनके साथ बहुत सुन्दर व्यवहार किया। प्रेमव्याख्या के अतिरिक्त देवीदास ने राजनीति का भी सुन्दर विवेचन किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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